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________________ भूमि परीक्षा को ले कर वास्तु शास्त्र में बहुत सी सामग्री दी गयी है और कहा गया है : 'ततो भूमि परीक्षेत वास्तुज्ञानविशारदः', यानी, वास्तु शास्त्र विद्या के ज्ञाता को सबसे पहले विभिन्न प्रकार से भूमि की परीक्षा करनी चाहिए। यज्ञ कुंड-मंडप आदि निर्माण हेतु शुद्ध (सोम, बुध, गुरु या शुक्र) वारों में, रिक्तादि, निंदित तिथियों को छोड़ कर, व्यतिपात आदि अशुभ योगरहित शुभ दिनों में, मंडप भूमि के परीक्षण हेतु पांच ब्राह्माणों को ले कर जाएं। यह भूमि यज्ञ योग्य है, या नहीं? इसकी परीक्षा करने हेतु उस भूमि पर कोई घास, तृण हो, तो उसे जला दें। तत्पश्चात् जानु मात्र भूमि खोदें और उस गड्ढे को जल से परिपूर्ण कर दें और पुण्याहवाचन करें। दूसरे दिन आ कर देखें। अगर जमीन फट जाए, उसमें हड्डी वगैरह अशुभ वस्तु दिखें, तो यह भूमि हवन योग्य नहीं। यह यज्ञकर्ता के आयु तथा धन का नाश करेगी। गड्ढे वाली, कांटे वाली, दीमक वाली भूमि का तो दूर से ही त्याग कर देना चाहिए। नारायण भट्ट के अनुसार उपर्युक्त एक हाथ गहरा, एक हाथ चौड़ा खड्डा, सूर्यास्त के समय खोद कर, जल से भरना चाहिए। प्रातःकाल यदि उसमें जल बचा हुआ मिले, तो शुभ, जल नही रहे, तो मध्यम। यदि जमीन फट जाए, तो उसे अशुभ मानना चाहिए। खनन के समय प्राप्त सामग्री : .. खात (नीव) के लिए भूमि खोदते समय पिपीलिका (दीमक, अजगर वगैरह) दिख पड़ें, तो उस भूमि पर निवास नहीं करना चाहिए। यदि तुष (भूसा), सर्प का अंडा आदि दिखे, तो मरणप्रद कष्ट होता है। वराटिका (कौड़ी) दुःख और कलह देती है। फटे हुए कपड़े विशेष दुःख देते हैं। जला हुआ काष्ठ (कोयला) रोग प्रदान करता है। खप्पर से कलह और लोहे से गृहकर्ता का मरण होता है। हड्डी, कपाल, केशादि का मिलना भूस्वामी के आयु का नाश करता है। परंतु यदि गोश्रृंग, शंख, शुक्ति, कछुआ मिले, तो शुभ होता है। भूमि खोदते समय यदि पत्थर मिले, तो सुवर्ण लाभ होता है और ईंट मिले, तो समृद्धि होती है। द्रव्य मिले, तो उत्तम सुख और ताम्र इत्यादि धातु मिलें, तो ऐश्वर्य की वृद्धि होती है http://www.Apnihindi.com
SR No.010000
Book TitleSaral Vastu
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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