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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 97 of 583 ISBN # 81-7628-131- 3 v -2010:002 'निःकांक्षित अंग' इह जन्मनि विभवादीन्यमुत्र चक्रित्वकेशवत्वादीन् एकांतवाददूषित परसमयानपि च नाकांक्षेत् 24 अन्वयार्थ : इह जन्मनि = इस जन्म में विभवादीनि = ऐश्वर्य, सम्पदा आदि को अमुत्र = परलोक में चक्रित्वकेशवत्वादीन् =चक्रवर्ती, नारायणादि पदों के च-औरं एकांतवाददूषितपरसमयान = एकांतवाद से दूषित अन्य धर्मों कों अपि = भी न आकांक्षेत् = नहीं चाहें मनीषियो! भगवान महावीर स्वामी की दिव्यदेशना हम सभी सुन रहे हैं कि जिसे स्वयं पर भरोसा है, उसे सब पर भरोसा होता हैं जो स्वयं कषायों से भरा होता है, स्वयं में वासनाओं से भरा होता हैं उस जीव को सब पर शंका ही होती हैं ऐसे ही जिसका हृदय पवित्र होता है वह सोचता है कि संसार में सब पवित्र आत्मा हैं शंका में जीव चाहे कि मैं तीर्थंकर-प्रकृति का बंध कर लूँ, संसारी जीव चाहे कि मैं परमात्मा बन जाऊँ किन्तु परमात्मा तो बहुत दूर है, वह तो परिवार का मुखिया भी नहीं बन सकतां तुम बड़े होगे तो बन भी जाओगे, पर तुम्हारे बनने से क्या होता है? कोई माने तब नां माँ जिनवाणी कहती है कि जो स्वयं में यथार्थ नहीं होता, असत्यता में जीता है, स्वयं के अविश्वास में जीता है, वह परमेश्वर में भी विश्वास नहीं कर पाता, उसके हृदय में विशुद्धता नहीं हैं क्योंकि जो विशुद्धता से, निर्मलता से भरा होता है उसे इतनी फुरसत कहाँ कि इसके बारे में सोचे, इनके बारे में सोचें जो फुरसत में बैठा है, जिसे कर्मबंध से भय नहीं है, जिसे संसार में रुकने का भय नहीं है, ऐसे जीव का काम इतना ही अवशेष बचा है कि तुम यहाँ की वहाँ, वहाँ की यहाँ करो, स्वयं शंका में जियो और दूसरों को शंका में डाल दों ___ भो ज्ञानी! पहली भावना का नाम दर्शन-विशुद्धि है, सम्यक्त्व विशुद्धि हैं सोलहकारण भावना का उल्लेख पूज्यपाद स्वामी ने 'सर्वार्थसिद्धि' ग्रंथ में किया हैं उमास्वामी महाराज ने 'तत्वार्थ सूत्र' में किया हैं धवला (षड्खण्डागम) पुस्तक नंबर 8 में जहाँ तीर्थकर-प्रकृति के बंध का वर्णन है, वहाँ आचार्य वीरसेन स्वामी ने उल्लेख किया कि आपकी 15 भावनायें हो जायें और पहली दर्शन-विशुद्धि/सम्यक्त्व-विशुद्धि-भावना नहीं है तो, 15 भावनायें महत्व ही नहीं रखती हैं इसलिये ध्यान रखना, निज का हृदय निर्मल सरोवर है, तो सबके प्रतिबिम्ब निर्मल नजर आते हैं और तुम्हारा हृदय-सरोवर ही मलिन है, तो प्रतिबिम्ब भी तुम्हें मलिन ही दिखते Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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