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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 83 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 है, तुम्हारी सामर्थ्य है तो पहले सहारा दे देनां उन वारिसेण मुनिराज से पूछो, उन्होंने जाकर कहा था, माँ! मेरी बत्तीस रानियों को बुलाओं माँ भी घबरा गई, हाय! क्या होने वाला है? माँ ने भी दो आसन रख दिये-एक वीतराग आसन, एक सराग आसनं बेटा जाकर काष्ट-आसन पर बैठ गयां माँ प्रसन्न थी कि मेरा बेटा तो वीतरागी आसन पर बैठा अहो! देखो, क्या स्थितिकरण किया था?- छाँटो बत्तीस में से तुमको जो अच्छी लगें अहो! धिक्कार हो मुझें चलो स्वामिन् , चलों एक क्षण में ऐसा वैराग्य उमड़ा कि बारह वर्ष में जो अनुभूति नहीं हुई, वह एक क्षण में हो गयीं ऐसी युक्ति, ऐसा वात्सल्य, ऐसी निर्मल भावना तुम्हारे अन्दर में आये तो, भो ज्ञानी! कोई अधर्मात्मा दिखेगा ही नहीं जैसे, एक दीवार खिसकती है, आप तुरन्त उसको ठीक कर लेते हो, क्योंकि घर अच्छा लगना चाहियें जो प्रत्येक दीवार को सुरक्षित रखता है, उसका नाम धर्मात्मा हैं। भो मुमुक्षु! सम्यकदृष्टि-जीव अपने ही अपने मात्र को नहीं देखता, यह स्वार्थ का मार्ग नहीं "स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं, ऐसे ज्ञानी साधु जगत में दुख:-समूह को हरते हैं" इसलिये, मनीषियो! हम तो सबसे यही कह रहे हैं कि मुनि बन जाओ, लेकिन शक्ति न हो तो कम से कम आप श्रावक बनकर रहना, क्योंकि आचार्य महाराज कह रहे हैं, कोई शिष्य उत्साही था, महाव्रती बनना चाहता था, आपने उसके प्रोत्साहन को क्या दिया ? अब क्या मालूम कि बाद में भाव बने कि नहीं बनें आचार्यश्री उपदेशक से कह रहे हैं- तुझ दुर्मति के द्वारा वह बेचारा ठगा गयां कौन ? जो मुनि बनने गया था, परन्तु आपने श्रावक बना कर छोड़ दियां इसलिये पहले महाव्रत का ही कथन करों यदि सामर्थ्य नहीं है, योग्यता नहीं है, तो वैसे समझाओं योग्यता है, सामर्थ्य है, तो आप उसे महाव्रत का ही उपदेश करें इस प्रकार से अपने जीवन में आप सब महाव्रती बनो, अणुव्रती बनो और मुमुक्ष बनकर मोक्ष को प्राप्त करो poooo mod poooo Scoop हार (सोलह सपने) Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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