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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 63 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 इतनी शक्ति तो है कि मंदिर में बैठकर भगवान का नाम ले सकों ऐसा कोई पुरुष नहीं होगा जो बिना कुछ सोचे बैठा रहे, उपयोग तो काम करेगां भो ज्ञानी! उस उपयोग को आप शुभ उपयोग में लगा दों भो ज्ञानी! वर्तमान में जिओ तो सुखमय जीवन जिओगें वर्तमान तेरा निर्मल है, तो भविष्य तेरा नियम से निर्मल होगां ज्ञानी भूत में नहीं जीता, भविष्य में नहीं जीता, वह तो वर्तमान में जीता हैं जो वर्तमान में जीता है, वही वर्द्धमान बनता हैं इसलिये बंध में सुख नहीं है, सुख तो निबंध में ही हैं यदि वर्तमान में तुम बंध के कार्यों में लिप्त रहोगे तो निबंध-दशा भविष्य में मिल नहीं सकतीं इसलिये बंध तभी बंद होगा, जब बंध के काम बंद कर दोगें अपनी खिड़की स्वयं को ही बंद करनी पड़ती हैं पड़ौसी को तुम कहोगे भी तो वह नहीं कर पाएगां इसलिए, भो चेतन! तुम तीर्थंकर को भी अपना पड़ौसी बना लोगे, तो वे भी कहेंगे-तेरे घर की खिड़कियाँ तो हम एक बार बंद कर सकते हैं, परंतु तेरे 'निज घर की खिड़कियाँ नहीं बंद कर सकते, उनके लिए तो तुझे ही बंद करना पड़ेगां आगम में लिखा है कि श्रुत के श्रवण मात्र से असंख्यात-गुण-श्रेणी कर्म की निर्जरा होती है, भो ज्ञानी! जिस वृक्ष की जड़ जितनी गहरी चली जाए वह उतना ही तूफान से बचा रहता हैं आचार्य पूज्यपाद स्वामी लिख रहे हैं: जैसे कि नवीन सकोरा (कुल्हड़) मिट्टी के बर्तन में आप एक बूंद पानी डाल देनां वह दिखेगा नहीं, परंतु और डालते जाओ, डालते जाओ तो कुल्हड़/ में पानी दिखना प्रारंभ हो जायेगां भो ज्ञानी आत्माओ! अभी आप सिद्धांत की दृष्टि से, आगम की दृष्टि से नये सकोरे हैं श्रुत तुम्हारे उस सकोरे में पड़ रहा है, बाहर नहीं जा रहा हैं पड़ते-पड़ते एक दिन वह आ जाएगा कि आप बहुत बड़े विद्वान के रूप में दिखना प्रारंभ कर दोगें ऐसे ही जितने गूढ-ग्रंथों में प्रवेश कर जाओगे, उतना शुद्ध चेतनत्व प्रस्फुटित होगां ज्ञान कम हो, कोई दिक्कत नहीं, परंतु विपरीत न हों अल्प-ज्ञानी को तो मोक्ष है पर विपरीत-ज्ञानी को मोक्ष नहीं हैं आचार्य समंतभद्र स्वामी ने लिखा है कि मोही का बहु ज्ञान भी संसार का कारण है, पर निर्मोही का अल्प ज्ञान भी मोक्ष का कारण हैं यदि अभव्य मिथ्यादृष्टिजीव ग्यारह अंग को भी समझ लेता है तो भी उसका ज्ञान संसार का ही कारण है और यदि एक भव्य सम्यकदृष्टिजीव अष्ट- प्रवचन- मात्र का (पाँच समिति, तीन गुप्ति) को जान लेता है तो समझो मुक्ति हो गई मोक्ष जाने के लिये बहुत शास्त्र पढ़ने की जरूरत नहीं है, परंतु परिणामों को स्थिर रखने के लिये बहुश्रुत ज्ञान जरूरी हैं इसलिए कभी भी ज्ञान का अनादर मत कर देनां अभिमान आए तो केवली को देखना, हीनभावना आए तो निगोदिया को देख लेनां भो ज्ञानी! बंध के कारण हैं-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगं आचार्य उमास्वामी महाराज ने लिखा है कि ये ही पाँच शत्रु तुझे बाँधने में लगे हुये हैं आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने चार शत्रु ही गिनाये हैं, क्योंकि प्रमाद को कषाय में सम्मिलित कर लिया गया हैं इन बंध के कारणों के द्वारा तेरे कषायरूप परिणाम हुए और वे कर्म –प्रदेश Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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