SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 59 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो ज्ञानी ! हमारा आगम ज्ञान से मोक्ष नहीं मानता हैं कभी भी भूलकर ज्ञान मात्र से मोक्ष मत कह देनां आपको याद होगा कि जब हाथी के पग तले बेटे की मृत्यु को सुन सेठ मूर्च्छा खाकर गिर गया और जैसे ही एक छात्र दौड़ते-दौड़ते आया, बोला - सेठजी ! वह तो पड़ोसी का बच्चा है तो उनकी मूर्च्छा भंग हो गईं बोले- मोक्ष हो गयां ज्ञान होते ही मोक्ष हो गयां यह बौद्धदर्शन कह रहा है कि बोधि होते ही मोक्ष होगां हाथी के पग तले बेटे की मृत्यु को सुनकर मूर्छित हुआ, परंतु 'मेरा बेटा नहीं है, ऐसा सुनकर मूर्च्छा भंग हुईं इसमें दर्शन–ज्ञान—चारित्र तीनों थें बेटा आपका नहीं था ये ज्ञान हुआ, जैसे ही श्रद्धान बना कि हाँ मेरा नहीं था तो मूर्च्छा भंग हो गईं मोह का छूटना चारित्र था, इसलिए कुंदकुंद स्वामी ने 'प्रवचनसार' में चारित्र की चर्चा की है चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समोत्ति णिद्दिट्ठों मोहक्खोह विहीणो परिणामो अप्पणो हु समो भो ज्ञानी ! मोह अर्थात् दर्शनमोह, क्षोभ याने चारित्रमोहं दर्शनमोह और चारित्रमोह से रहित परिणाम जिस जीव के हैं, उसका नाम संयमी हैं दर्शनमोह एवं चारित्रमोह चल रहा है, उसका नाम संयम नहीं हैं इसलिए ध्यान रखना, ज्ञान से मोक्ष नहीं होता हैं सम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्र तीनों की एकता की पूर्णता का नाम मोक्ष हैं इसलिए जैन - संस्कृति आत्मा के क्रमिक विकास की संस्कृति हैं ध्यान रखना, निर्मल पुरुषार्थ मोक्षपुरुषार्थ है, उस मोक्षपुरुषार्थ की सिद्धि जिसे हो जाये, वही पुरुषार्थसिद्धि हैं उस पुरुष के अर्थ की सिद्धि का हेतु 'चारित्रं खलु धम्मो हैं चारित्र के अभाव में महान नहीं बन पाओगें आप कम से कम अणुव्रत स्वीकार कर लेना, क्योंकि अमृतचंद स्वामी ने शर्त रख दी है कि इस ग्रंथ को तभी सुनें जब आप अष्ट मूलगुण धारी हों इतनी बड़ी शर्त लगाने वाला यह पहला ग्रंथ हैं ग्रंथराज 'षट्खण्डागम' में उल्लेख है कि जब तक महाव्रती नहीं बनोगे, तब तक आप इसे अध्ययन नहीं कर सकते हों आचार्य अमृतचंद स्वामी कह रहे हैं कि जब तक अणुव्रती नहीं बनोगे, तब तक पुरुषार्थसिद्धयुपाय नहीं सुन सकतें बात को समझना, मोक्षमार्ग चौदहवें गुणस्थान तक चलता है और जिस दिन मार्ग की पूर्णता हो जायेगी उस दिन, हे मार्गी! तू मोक्ष प्राप्त कर लेगा इसलिए कल्पनाओं में मोक्ष का आनंद मत लूटनां यदि ज्ञान से मोक्ष मानोगे तो आप जैनदर्शन में नहीं रहोगें 'समयसार' आदि ग्रंथों में ज्ञान से मोक्ष कहाँ है? सम्यक्त्व से भी मोक्ष कहाँ है? चारित्र से भी मोक्ष कहाँ है ? भो चेतन ! अध्यात्म ग्रंथ अभेद की बात करते हैं अतः, सम्यक्दर्शन - ज्ञान - चारित्र / रत्नत्रय से मोक्ष होगां इसलिए मोक्ष तो एक ही हैं आचार्य उमास्वामी ने सूत्र को बड़े हिसाब से लिखा 'सम्यक्दर्शनज्ञानचारित्राणिऽमोक्षमार्गः, इन तीनों की एकता का नाम मोक्षमार्ग हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy