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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 568 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "निर्वाण का हेतुः रत्नत्रय धर्म' शंका ननु कथमेवं सिद्धयति देवायुः प्रभृतिसत्प्रकृतिबन्धः सकलजनसुप्रसिद्धो रत्नत्रयधारिणां मुनिवराणाम् 219 अन्वयार्थ : ननु = कोई पुरुष शंका करता है कि रत्नत्रयधारिणां = रत्नत्रयधारी मुनिवराणाम् = श्रेष्ठ मुनियों के सकलजनसुप्रसिद्धः = समस्त जनसमूह में भलीभांति प्रसिद्ध देवायुः प्रभृतिसत्यप्रकृतिबन्धः = देवायु आदिक उत्तम प्रकृतियों का बन्ध एवं = पूर्वोक्त प्रकार से कथम् सिद्ध्यति = कैसे सिद्ध होगा? समाधान रत्नत्रयमिह हेतुर्निर्वाणस्यैव भवति नान्यस्यं आस्रवति यत्तु पुण्यं शुभोपयोगोऽयमपराध:220 अन्वयार्थ : इह = इस लोक में रत्नत्रयम = रत्नत्रयरूप धर्मं निर्वाणस्य एव = निर्वाण का ही हेतु कारण भवति = होता है, अन्यस्य न = अन्य गति का नहीं तु यत् = और जो रत्नत्रय में पुण्यं आस्रवति = पुण्य का आस्रव होता है, सों अयम् अपराधः= यह अपराध, शुभोपयोगः = शुभोपयोग का हैं मनीषियो! भगवान् वर्द्धमान स्वामी का यह पावन शासन जयवंत हों वह दशा जयवंत हो, जब वे पावापुर की ओर चल दियें आज वह निर्मल दिन है, जिस दिन वीतराग प्रभु ने बहिरंग-लक्ष्मी का पूर्ण विसर्जन कर दिया थां धन्य हो गई वह त्रयोदशी, जिस दिन तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी ने गमनागमन का भी त्याग कर दियां समवसरण की सम्पूर्ण विभूति बिखर चुकी है, पूरा वैभव समाप्त हो गयां अब मात्र अंतरंगश्री शेष है; बहिरंग-लक्ष्मी समाप्त हो गई अब पाप-प्रकृति का क्षय नहीं कर रहे, अब पुण्य-प्रकृति के क्षय में लग गयें पाप-प्रकृतियाँ तो क्षय हो चुकीं अभी साता-वेदनीय, शुभ-आयु, शुभ-नाम, शुभ-गोत्र पुण्य-प्रकृतियाँ Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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