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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 533 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 बढ़ जाएगी तो फिर खाने को कहाँ से आएगा? जैसे तुम्हें खाने को मिल रहा है, वैसे उन्हें भी मिलेगां विचार करो, महाभारत काल में मात्र भारत देष में 56 करोड़ यादवों का उल्लेख मिलता है, अन्य समाज भी उस समय थीं क्या वे भूखे मरते थे? नहीं सभी अपना भाग्य लेकर आते हैं, कोई किसी को नहीं खिलाता राष्ट्र नेता ध्यान दे, नरसंहार बंद करे, स्वयं शांति का पालन करे एवं जनता से करायें, व्यर्थ की चिंता न करें अब्रह्म दोषों की खान हैं गुणों का नाशक, पाप का बंधु यानी आपदाओं का संगम हैं कुशील व्यक्ति इस लोक में निंदा का पात्र होता ही है एवं परलोक में दुर्गति को प्राप्त करता हैं रावण की कथा सभी को मालूम हैं सीता का हरण मात्र किया, शील भंग नही, फिर भी रावण का आजतक पुतला जलाया जाता हैं नरकगति को प्राप्त तो हुआ ही, किन्तु उसका परिणाम कि उसका नाम भी लेना पसंद नही करतें शत्रु के घर में भीख माँग लेना श्रेष्ठ है, परन्तु शील भंग करके साम्राज्य/पद पाना उचित नही हैं नीतिकारों ने कहा-उल्लू को दिन में नही दिखता, काक को रात्रि में नही दिखाई देता, पर कामी को न दिन में दिखता है, न रात में ब्रह्मचर्य से च्युत होने के कारण, दिगम्बराचार्यों द्वारा इस प्रकार कहे गये हैं 1. स्त्री संसर्ग, 2. सरसहार, 3. सुगंध संस्कार, 4. कोमल शैयासन, 5. शरीर मंडन, 6. गीत वादिव श्रवण, 7. अर्थग्रहण, 8. कुशील संसर्ग, 9. राजसेवा, 10. रात्रि संचरण, ये दस अब्रह्म के कारण हैं जिन्हें शील की रक्षा करना है, वे इनसे बचें, दूर रहें कामी व्यक्ति के न विवेक रहता है, न वैभव/मान-सम्मान सब प्रलय को प्राप्त हो जाते हैं, बल्कि अपने जीवन से भी हाथ धो-बैठता हैं अतः जीवन-प्राण ब्रह्मचर्य है, जो कि उभय लोक को सुख देने वाला हैं इसे धारण कर चैतन्य का भोग करो, शिवरमणी का वरण कर आत्मिक आनंद भोगो, यही जीवन का सार हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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