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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 514 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 'पाँच समितियाँ सम्यग्गमनागमनं सम्यग्भाषा तथैषणा सम्यक् सम्यग्ग्रहनिक्षेपौ व्युत्सर्गः सम्यगिति समितिः 203 अन्वयार्थ : सम्यग्गमनागमनं = सावधान होकर भले प्रकार गमन और आगमनं सम्यग्भाषा =उत्तम हितमितरूप वचनं सम्यक् एषणा = योग्य आहार का ग्रहणं सम्यग्ग्रहनिक्षेपौ = पदार्थ का यत्नपूर्वक ग्रहण और यत्नपूर्वक क्षेपणं तथा = औरं सम्यग्व्युत्सर्ग = प्रासुक भूमि देखकर मलमूत्रादिक त्यागनां इति = इस प्रकार ये पाँचं समितिः = समितियाँ हैं हे भव्यात्माओ! भगवान महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने अलौकिक सूत्र प्रदान किया है कि विश्व में यदि कोई महिमा है, तो संस्कारों की हैं एक पाषाण की प्रतिमा को परमात्मा बनाने की यदि कोई विधि है, तो उसका नाम संस्कार हैं एक पत्थर की प्रतिमा भगवान के रूप में पुजना प्रारंभ हो जाती है और एक सामान्य मनुष्य गुरु के रूप में दिखना प्रारंभ हो जाता हैं यह संस्कारों की ही महिमा हैं पत्थर की प्रतिमा में तो सिर्फ सूरि मंत्र देने से उसकी पूजा प्रारंभ हो जाती है, लेकिन परमेष्ठी बनने के लिए संस्कार देने के साथ साधना भी की जाती हैं साधना न की हो, संस्कार मात्र दिये हों, उसे साधु नहीं कहा जातां ध्यान रखना, अरहंत के बिम्ब में अरहंत के गुणों का आरोपण तो किया ही जाता है, लेकिन उसके पूर्व उसमें निग्रंथ के गुणों का आरोपण दीक्षा कल्याणक के दिन होता हैं अरहंत के गुणों का आरोपण तो मात्र केवल ज्ञान कल्याणक के दिन होता हैं भो ज्ञानी! जब तक निग्रंथ के गुणों का आरोपण नहीं है, तब तक निग्रंथ बनेंगे कैसे? जब तक बालों के प्रति भाव नहीं गये, तब तक बाल उखाड़ने से कुछ भी होने वाला नहीं बाल उखड़ चुके और परिणाम नहीं उतरे, तो निग्रंथ नहीं पुव्वं जो पंचिंदिय तणुमणवचि हत्थः पाय-मुंडाओं पच्छा सिर मुंडाओ सिवगदिपहणायगो होदिं 76 (स.सा.) पहले मन का मुण्डन करों जिसने मन का मुण्डन कर दिया, वही सिर मुड़वाने का पात्र हैं इसीलिए, 'भगवती आराधना' के मूलाचरण प्रकरण में दस प्रकार के मुंडन का कथन किया हैं मुण्ड यानि वशीकरणं मन ___Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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