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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 492 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 उसकी एक श्वांश मात्र में हंस-आत्मा चली गईं न किसी से सेवा कराई, न किसी की सेवा की वह भी एक जीव था, क्योंकि उन्होंने इंद्रियों का दुरुपयोग नहीं कियां भो ज्ञानी आत्माओ! जो कम उम्र के हों, उन लोगों के साथ थोड़ी मित्रता बनाके चलना और कह देना-मेरे मित्र! जब तुमने हर घड़ी मेरे साथ सहयोग किया है, तो मृत्यु से पूर्व मेरे विषमता के काल में समता-सीख बताने अवश्य आनां अंतिमकाल में जिसने सहयोग कर दिया अथवा जिनके साथ तुम्हारा बिगाड़ हो गया हो, आयु ढलते-ढलते सबसे क्षमा माँग लेनां भो ज्ञानी! जैसे परिणाम होंगे, वैसा बंध होगां अमृतचन्द्रस्वामी बता रहे हैं-अहो ज्ञानी आत्माओ! तीन संध्या वेला हैं- सुबह, शाम, मध्याह्यं यह सामायिक का काल आत्मा की पढ़ाई का सुंदर काल हैं इसमें अपने लिए ही सोचा जाता हैं उस काल में दूसरे बहीखाते नहीं खोलना, अपने जीवन के बारे में सोचा करों उस काल में मन इधर-उधर नहीं ले जानां आप पूजन दूसरे से करवा सकते हो, पाठ दूसरे से करा सकते हो, घर में भक्तामर जी कराना है तो मंडली बुला ली और स्वयं सो गयें एक गाँव में पुजा हो रही थी, टेप लगा हुआ था, बस आप अर्घ चढ़ाते जाओं सब कुछ कर लोगे, लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि सामायिक दूसरे से नहीं करा सकते हो, सामायिक तो स्वयं ही करना पड़ेगी सामायिक के लिए समय नहीं है, उसमें विकल्प हैं कि जब-जब माला फेरते हैं तब-तब जो कभी नहीं सोचा था वह विचार आते हैं सुविचार नहीं आए और यदि उस बीच कहीं निद्रा देवी आ गई, तो उसने भी मुझे मार दियां निद्रा में सम्पूर्ण विवेक नष्ट हो जाता हैं इसीलिए सामायिक कर लों यदि एक दिन भी सामायिक कर ली, तो समझ लो, तुम्हारा कोई शत्रु नहीं मिलेगां आज पूजा-पाठों की वृद्धि हुई है और सामायिक में कमी आई हैं सामायिक में कमी आने का ही प्रभाव है कि परस्पर में कलुषता बढ़ रही है, क्योंकि सैर-सपाटे में हम जी रहे हैं, ढोल-धमाके में जी रहे हैं, पर सोचने का समय दे ही नहीं रहे हैं हे योगी! तू एकांत में बैठ जा, अपने निज के परिणामों को ठीक कर लें विश्वास करना, जिनको मानसिक रोगों से छटकारा पाना हो, वे एक घंटा सामायिक को देना प्रां मानसिक रोग ठीक हो जाएँगें भो ज्ञानी! आचार्य भगवन् सामायिक व्रत के अतिचार गिना रहे हैं कि सामायिक तो आप कर रहे हो, लेकिन वचन–प्रवृत्ति अन्यथा चल रही हैं हूँ-हाँ, हुँकार चल रही हैं कभी नहीं लगता आपको कि हम अपने साथ कर क्या रहे हैं? सामायिक करने के लिये मैं आपको समय भी बता देता हूँ, बहुत समय है आपके पास जा रहे हो, आ रहे हो, उस समय क्या करते हो? मौन ले लो, भगवान का नाम लों जब आप सोने जाते हो, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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