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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 484 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 अनाचार में क्यों जा रहा है? वह इस प्रकार की क्रियाएँ इसलिए कर रहा है कि उसके इतने तीव्र कषाय भाव हैं कि एक क्षण को भी अपने आपको सम्हाल नहीं पा रहा है, अनंगक्रीड़ा में लीन हैं अतः उनको अनाचार की संज्ञा दी हैं अहो! स्वयं का ब्रह्मचर्य व्रत है और दूसरे की शादी करा रहा हैं कुछ लोगों का जीवन इसी दलाली में चल रहा हैं पता नहीं कितने युवकों की कुंडलियाँ रखी होंगीं भो ज्ञानी! शादी के बाद वह नवकोटी जीवों की हिंसा करेंगे और आप करवाओ शादियाँ ? अरे! एक-दूसरे के विवाह करवाना, अन्य- विवाहकरण अतिचार हैं जिसकी शादी नहीं हुई है उसके यहाँ आना-जाना, जिनका चारित्र ठीक नहीं है ऐसी स्त्रियों के यहाँ आना-जाना तथा उनसे हास्य-विलास की चर्चा करना, यह इत्वरिका गमन' नाम का अतिचार हैं भो ज्ञानी ! परिग्रह का परिमाण कर लिया था, लेकिन लोभ कषाय ने पिंड नहीं छोड़ा एक मकान का नियम ले लिया था, पर लोभ कह रहा है कि यह मकान तो छोटा-सा महसूस होता है परन्तु दो मकान करना नहीं है, अतः पड़ोसी के मकान को खरीदकर बीच की दीवार को तोड़ दियां यानि व्रत भी नहीं पाल रहा और मायाचारी भी कर रहा हैं मकान की सीमा को बढ़ा देना, क्षेत्र-खेत आदि की मेड़ को तोड़कर, छोटे खेत को बड़ा बना देना, ये परिग्रह-परिमाण व्रत का अतिचार हैं एक व्यक्ति ने नियम लिया कि दस आभूषण रखूँगा और जो दस रखे थे वह दस तोले के थें अब वह दस की गिनती तो बराबर रख रहा है, पर उसने दस को तोड़कर एक बना लिया तथा नौ बजनदार आभूषण और बनवा लियें अहा! लोगों को सोने में बहुत राग होता है, जबकि उससे कोई पेट नहीं भरता और वह शांति से सोने भी नहीं देता हैं यदि शांति से सोना चाहते हो तो सोना रखना छोड़ दों धन-धान्य, गाय-भैंस, दास-दासी आदि इतने रखेंगे, परंतु बढ़ा दी गिनतीं यह ध्यान रखना कि यह भी दोष हैं कुछ लोग तो नौकर को अपना परिग्रह मानते ही नहीं हैं आपने बहुत सारे सेवक किसी कारण वश बुला लिये, लेकिन दोष तो लगेगां चाहे शादी के निमित्त से बुलाए, चाहे अन्य किसी के निमित्त से वे चलकर आ रहे हैं और वे जो कुछ भी क्रिया कर रहे हैं, उनका जो भी असंयम - भाव होगा, आपके निमित्त से ही होगां आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि इन सबके भागीदार आप होंगें " भो ज्ञानी! जो घर में चालीस-चालीस पेटियाँ कपड़ों से भरी हुई रखी है, उनमें से साथ में कितनी ले जाओगे? ठंडी के दिनों में कितने गरीब आपको वस्त्रों के अभाव में सड़क पर ठिठुरते मिलते हैं, सोचा कभी आपने? हमारे घर पर वस्त्रों में कीड़े लग रहे हैं, सड़ रहे हैं तो उन्हें सड़क पर फेंक देंगे, पर किसी के तन के ऊपर नहीं डाल सकेंगें अहो! उन पेटियों को कम कर दों एक सज्जन जूते पहनकर मंदिर आए थे और श्रीजी के दर्शन करते वक्त बाहर उतरे हुए पन्द्रह सौ रुपए के जूते पर बार-बार दृष्टि जा रही थीं कहीं चोरी न चले जावें बताओ, वंदना किसकी हो रही थी? अगर वास्तव में कोई उठाकर ले जाए, तो परिणाम कैसे होंगे? इसीलिए माँ जिनवाणी कहती है-जिनेन्द्रदेव के मंदिर में निःसंग होकर आओ, परिग्रह का विसर्जन करके आओ - Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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