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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 479 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 ध्यान रखना, मोक्षमार्ग में मिथ्यात्व रूपी अंधकार को भगाने के लिए लाठी की आवश्यकता नहीं होतीं मोक्षमार्ग यही कहता है कि आप ज्ञान के दीप को जला दो, चारित्र और श्रद्धा के दीप को जला दो, मिथ्यात्व का अंधकार आ ही नहीं पाएगा, भगाने का प्रश्न ही नहीं होगां 'समयसार' तो यह कह रहा है कि न बुलाओ और न भगाओ, मात्र भुला दो - उसका नाम सम्यक्दर्शन हैं बुलाने में खर्च होगा, भगाने में खर्च होगा, किन्तु भुलाने में कोई खर्च नहीं होगां यहाँ से मोक्षमार्ग प्रारंभ होता हैं अतः जिसे आज तक तुमने याद कर रखा है, आज तक तुम स्मृतियों में लाए हो, उन मिथ्यात्व की स्मृतियों को भुला दो इसका नाम ही सम्यक्ज्ञान हैं मिथ्यात्व/कुचारित्र के प्रति आपका गमन था, वहाँ जाना बंद कर दो, इसका नाम ही सम्यक्चारित्र हैं जो आपके अंतरंग में विपरीत श्रद्धा बैठी थीं उसको समाप्त कर दो, इसका ही नाम सम्यक्दर्शन हैं बस, मोक्षमार्ग बन चुका हैं याद करना बहुत सरल है, पर भुला पाना बहुत कठिन हैं दस वर्ष पहले किसी ने कुछ कह दिया था, वह तुम्हें याद हैं यदि यादें भूल जाएँ, तो सारा विश्व तुम्हारे नाम की जाप करेगा आज आप उदयगिरी में शीतलनाथ स्वामी के निर्वाण कल्याणक की याद कर रहे हो, क्योंकि उन्होंने विश्व को भुला दिया था, उन्होंने संसार की सम्पूर्ण विषमताओं को भुला दिया था जब तुम जाप करने बैठते हो, तब याद आ जाती है कि दुकान पर तो ताला नहीं पड़ा है जब आप जाप करने बैठते हो तो याद आ जाती है कि अब तो भूख लगी हैं भूख-प्यास मिटती है, तो भोगों की याद आना प्रारंभ हो जाती हैं इसलिए तुम्हारी कोई याद नहीं करतां अहो! आज तक निर्वाण क्यों नहीं हो पा रहा है? क्योंकि हमने चारित्र का निर्माण नहीं किया है, श्रद्धा की नींव नहीं भरी, संयम की दीवार को खड़ा ही नहीं कियां पत्थर के भगवान को तुमने संस्कारित करने का विचार किया, तो आपने प्रतिष्ठाचार्यों की सलाह ले लीं आचार्य कुंदकुंद देव यही कह रहे हैं कि अपने आपमें सलाह ले लेनां यदि भूमि में अस्थियाँ हैं, हड्डियाँ हैं, भूमि में नमी है, कंकर पत्थर हैं, सर्प - मेंढक हैं, ऐसी भूमि पर कभी जिनालय स्थापना न करें जिस भूमि पर श्मशान घाट हो, उस भूमि पर कभी जिनबिम्ब की स्थापना न करें अहो! तेरी आत्म-भूमि में मिथ्यात्व की वामी और कषायों के साँप जहाँ बैठे हों, वहाँ चारित्र की स्थापना नहीं हो पातीं यदि छिलका हट गया है, तो चावल अंकुरित नहीं होतां ऐसे ही, जिस आत्मा से कर्मों के छिलके हट जाते हैं वह आत्मा भवांकुर को प्राप्त नहीं होती, इसका नाम निर्वाण हैं अष्ट-कर्म का दहन जिन्होंने किया है, वह आत्मा संसार में वापस नहीं आएगी जब सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र प्रकट हो जाता है तो, भो ज्ञानी! आत्मा के बल्ब में ज्योति उदित हो जाती है और संसार का अंधकार समाप्त हो जाता है, इसका नाम निर्वाण-कल्याणक हैं एक बुझे दीप को लेकर आप जले दीपक के नीचे पहुँचकर उसको स्पर्श करा देते हो और बुझे दीप को जला लेते हों बस ध्यान रखना, जीवन भी आप से कह रहा है कि हमारे Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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