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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 475 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "अहिंसा और सत्यव्रत के अतिचार" छेदनताडनबन्धा भारस्यारोपणं समधिकस्यं पानान्नयोश्च रोधः पञ्चाहिंसाव्रतस्येतिं 183 अन्वयार्थ : अहिंसाव्रतस्य = अहिंसा व्रत के छेदनताडनबन्धा = छेदना, ताड़न बांधनां समधिकस्य = अतिशय अधिक भारस्य = बोझे का आरोपणं = लादनां च = और पानान्नयोः = अन्नपानी कां रोधः = रोकना अर्थात् न देनां इति पंच = इस प्रकार पाँच अतिचार हैं मिथ्योपदेशदानं रहसोऽभ्याख्यानकूटलेखकृती न्यासापहारवचनं साकारमन्त्रभेदश्च 184 अन्वयार्थ : मिथ्योपदेशदानं = झूठा उपदेश देनां रहसोऽभ्याख्यान = एकांत की गुप्त बातों का प्रकट करना कूटलेखकृती = झूठा लिखनां न्यासापहारवचनं = धरोहर के हरण करने का वचन कहनां च = और साकारमन्त्रभेदः = काया की चेष्टाओं से जानकर दूसरे का अभिप्राय प्रकट कर देनां ये सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं जिसने संयम स्वीकार नहीं किया, उसे मात्र असंयमी शब्द से संबोधित किया जाता हैं पर संयम को स्वीकार करने के उपरान्त जो संयम को छोड़ देता है, उसे तो असंयमी भी नहीं कहा जातां इस कारिका में आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी अहिंसा-व्रत और सत्य-व्रत के अतिचार गिना रहे हैं यदि किसी जीव ने अणुव्रत धारण किया है कि किसी जीव का घात नहीं करेंगे, परंतु यदि किसी ने किसी भी जीव के कान छेद दिये, नाक छेद दी, अंग-विशेष का छेदन कर दिया अथवा आपने गाय, भैंस, बैल आदि के अंगों को छेद दिया, तो यह 'छेदन' नाम का अहिंसा-व्रत का दोष हैं आपने अहिंसा व्रत धारण किया है, परंतु जब वह छिदवाना नहीं चाहता था तो आपने उसको बचपन में जबरदस्ती नाक-कान छेद दियें उसको पीड़ा तो हुई हैं जहाँ पीड़ा है, कष्ट है, वेदना है, वहाँ हिंसा हैं अंगों को छेद देना, अहिंसा-अणुव्रत का दोष हैं वध नहीं कर रहे हो, लेकिन डंडा /चाबुक मार दोगे तो भी हिंसा हो जायेगीं अहिंसा- अणुव्रती किसी को चाबुक नहीं मार सकतां खेल-खेल में तुमने बच्चे को रुला दिया, कष्ट तो दिया है, पीड़ा तो दी हैं पिंजरे में पक्षियों को बंद कर लिया, घर में कुत्ते पाले हो, आपको लगता जरूर है कि आप उसकी सुरक्षा कर रहे हैं, लेकिन उसकी Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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