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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 463 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 हे यतीश्वर! कल जो श्रावक था, आज श्रमण के रूप में उनकी सेवा में सभी मुनिराज रत हो जाते हैं, क्योंकि वैयावृत्ति परम-तप हैं वैयावृत्ति के अभाव में समाधि नहीं हो पाएगी उस क्षपक की अब 48 मुनिराज सेवा करेंगे सल्लेखना का स्थान नगर से न अति-दूर हो, न अति-नजदीकं शीत, उष्णता तथा गाँव का कोलाहल क्षपक की सल्लेखना में बाधक न हों वसतिका में खिड़कियाँ होना आवश्यक है, क्योंकि भीड़ दर्शन के लिए आएगी किसी को मना नहीं करना, परंतु ध्यान रखना कि अंदर असंयमी का प्रवेश न हों 'भगवती-आराधना में लिखा है कि जो उत्तमार्थ साधक की सल्लेखना के दर्शन नहीं करना चाहता, लगता है कि उसे उत्तमार्थ मरण से द्वेष है अथवा समाधि से प्रीति नहीं हैं भो ज्ञानी! निर्यापकाचार्य सम्पूर्ण-गण की स्वीकृति लेने हेतु कहते हैं कि यह क्षपक अंतिम-समाधि के उद्देश्य से आया है, इनकी सल्लेखना के समय सेवा आप करेंगे कि नहीं? इनको स्वीकार करें या नहीं? क्योंकि यह क्षपक सम्पूर्ण-संघ से आज स्वीकृति चाहता हैं सभी मुनिराज-त्यागीजन कहते हैं कि, हे प्रभु आचार्य भगवन्! यह तो हमारा अहो भाग्य है कि वैय्यावृत्ति करना पड़ेगी सोलहकारण भावनाओं में वैय्यावृत्ति एक भावना हैं जो वैय्यावृत्ति से शून्य है, वह तो धर्म से शून्य हैं भो ज्ञानी! जिस संघ में वैय्यावृत्ति की भावना नहीं है, उस संघ में कभी प्रवेश नहीं करना चाहिएं यह दृष्टि कोई सिखाने की नहीं अपितु अंतरंग का ऋजु-परिणाम है, ऋजु-भाव है, मार्दव भाव हैं और धर्म के प्रति ललक है, तो अपने आप ऐसे भाव बनेंगे कि अपन क्षपक की सेवा करेंगे अहो! श्रद्धा-विहीन कोई वैय्यावृत्ति नहीं होती हैं वैय्यावृत्ति अंतरंग से होती हैं यह ध्यान रखा जाता है कि एकसाथ एक ही सल्लेखना कराई जाती है, दो की नहीं क्योंकि क्षपक को कहीं भाव आ गये कि निर्यापकाचार्य दूसरे पर विशेष ध्यान दे रहे हैं, मेरे पर नहीं दे रहे हैं, तो समाधि बिगड़ जायेगी भो ज्ञानी! सबसे कठिन कषाय सल्लेखना हैं प्रतिकूलता दिखने पर क्रोध की ज्वाला नाक पर नाचने लगती हैं अहो! कमण्डल-पिच्छी कल्याण नहीं करा पाएँगे, कषाय-सल्लेखना ही काम कराएगी अतः ऋषिराज पूरे संघ को व्यवस्था सौंपते हैं और चार-चार के ग्रुप बना दिए जाते हैं चार मुनिराज साधक की आहार चर्या में सहयोग करेंगे, चार मुनिराज जहाँ क्षपक विराजमान है उसके दरवाजे पर बैठेंगे, चार मुनिराज उनके मल-मूत्र को उठाने की व्यवस्था करेंगें निर्विचिकित्सा अंग जिसके पास नहीं हैं, वह ऐसी सेवा नहीं कर सकेगां आचार्य वीरसागर महाराज की जयपुर में सल्लेखना चल रही थीं आचार्य महावीरकीर्ति महाराज जब पहुँचे तब क्षपक को कफ आ रहा था, तो उन्होंने अंजुली कर दी अन्य मुनिजन बोले-नहीं-नहीं, आप तो मेहमान हैं बोले-नहीं, महाराज! मेरी/वैय्यावृत्ति सेवा को आप मत ठुकराओ, मेरा कर्तव्य मुझे करने दों अंजुली में कफ लेकर बाहर प्रमार्जन करके छोड़ दियां पेट शुष्क है, भोजन नहीं जा रहा, तो 'भगवती-आराधना' में स्पष्ट कथन है कि अरण्य का तेल मल-शोधन के लिए बहुत उपयोगी है, मल सूखने Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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