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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 45 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 事 = व्यवहारनिश्चयौ यः प्रबुध्यतत्वेन भवति मध्यस्थः प्राप्नोति देशनायाः स एव फलमविकलं शिष्यः 8 जो (जीव) व्यवहार निश्चयौ = व्यवहारनय और निश्चयनय को तत्वेन = वस्तुस्वरूप सें होता है ( अर्थात निश्चयनय और व्यवहारनय अन्वयार्थ :- यः = प्रबुध्य यथार्थ रूप से जानकरं मध्यस्थः = मध्यस्थं भवति के पक्षपात रहित होता है ) सः = वहं एव हीं शिष्यः = शिष्यं देशनायाः = उपदेश का अविकलं फलम् = सम्पूर्ण फल कों प्राप्नोति = प्राप्त होता हैं ग्रंथारंभ ਰ = = अस्ति पुरुषश्चिदात्मा विवर्जितः स्पर्शगन्धरसवर्णैः गुणपर्ययसमवेतः समाहितः समुदयव्ययध्रौव्यैः 9 अन्वयार्थ :- पुरुषः पुरुष ( अर्थात् आत्मा ) चिदात्मा चेतनास्वरूपं अस्ति रस, गन्ध और वर्ण से विवर्जितः = रहित हैं गुणपर्यय समवेतः ध्रौव्यैः = उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सें समाहितः- युक्त हैं मनीषियो! सर्वज्ञ-शासन में आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने सहजदशा का संकेत देते हुए कथन किया है कि आत्मदेव को दिखाने और देखने का मार्ग बताने वाले अरिहंतदेव हैं आचार्य भगवन् कह रहे हैं कि बस जिसने इस तत्त्व को समझ लिया, वह तटस्थ हो जाता हैं तटस्थ हुये बिना आज तक कोई तत्त्व को समझ नहीं सका, क्योंकि धाराओं में बहने वाला कभी सत्य को नहीं सुन पायां नदी के दो तट हैं, परंतु वह नीर नहीं हैं दो तटों के बीच में जो बह रहा है, वह नीर हैं निश्चय नीर नहीं, व्यवहार नीर नहीं निश्चय व व्यवहार के मध्य में जो वीतराग धर्म की धारा बह रही है, वह है नीरं जिसने तटों को पकड़ लिया, वह कभी-भी = = हैं स्पर्शरसगन्धवर्णे: = स्पर्श, = गुण और पर्याय सहित हैं तथा समुदयव्यय Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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