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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 445 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 ज्ञानी आत्मा ! जिस उत्तम श्रावक को घर में तीर्थंकर जैसा महामुनि पात्र मिला हो, नियम से वह जीव मोक्षगामी ही होता हैं लेने वाला तो मोक्ष जा ही रहा है, देने वाला भी जायेगा आज तक तुमने तीर्थंकर मुनि को आहार नहीं दिए. पर यह ध्यान रखना, नरकायु का बंधक सामान्य मुनि को भी आहार नहीं दे सकतां सम्मेद शिखर की वंदना और निग्रंथ मुनि के हाथ पर दिया गया दान यह तुम्हें द्योतित कर रहा है कि तुम्हारी नरक - आयु का बंध नहीं हुआ जिस जीव को अशुभ- आयु का बंध हो चुका है, वह त्यागी के हाथ पर ग्रास नहीं रख सकता, उसके भाव नहीं बनते, यह सिद्धांत हैं अब कोई कहे कि हमारी व्यवस्था नहीं बन पा रही, तो अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि क्यों नहीं बन पा रही ? विषमताओं के मध्य में तुमने पुत्र की शादी की, उसमें भोजन भी किया, तुम बेटे की वर्षगांठ और अपनी जन्मगांठ भी मना रहे हो, यह कौन सी सम्यक्त्वा की क्रिया है? अब तो भोगों की वर्षगांठ भी मनाने लगे हैं, अर्थात् शादी की वर्षगांठ मनाते हैं, जो यहाँ मिथ्यात्व हैं उधर श्मशान घाट तुम्हारी याद कर रहा है और इधर तुम भोगों की याद कर रहे हों अरे! यह वीतराग - शासन है, इसमें मृत्यु महोत्सव मनाया जाता हैं जीने की शैलियाँ तो अनेक ने सिखायीं हैं, एकमात्र नमोस्तु शासन ही ऐसा है, जिसमें मरण की शैली सिखायी जाती हैं यह वीतराग - विज्ञान मरण का विज्ञान भी हैं तुम तीर्थों की वंदना छोड़ देना, भगवान् की पूजा छोड़ देना, लेकिन बनने वाले भगवान की पूजा मत छोड़ देनां तुम सामायिक का प्रायश्चित कर लोगे, प्रतिक्रमण का प्रायश्चित कर लोगे, लेकिन क्षपक की सल्लेखना नहीं छोडनां समाधि काल में क्षपक की सेवा करना, सामायिक काल में भी चले जानां समाधि भंग हो गयी तो उस जीव का तुमने क्या किया ? - - भो ज्ञानी ! शरीर से मोक्ष नहीं होता, शरीर से साधना होती हैं मोक्षमार्ग मन से होता है, क्योंकि मन से ध्यान किया जाता हैं चित्त के निरोध का नाम ध्यान हैं चित्त की निर्मलता का नाम चारित्र हैं यदि तुम्हारा चित्त कलुषित है तो करते रहो सामायिकं वीतराग - वाणी कहेगी कि तेरे पास कुछ नहीं हैं द्रव्य श्रुत से मोक्ष नहीं होता, मोक्ष तो भावश्रुत से होता हैं बराबर कहने से मोक्ष नहीं होगां जब परिणाम बराबर होंगे, तब मोक्ष होगां ध्यान रखना, यदि आपने ईमानदारी से व्यापार किया है और कोई आपको बदनाम भी करे, तो घबराना नहीं परंतु यदि आप ईमानदारी से कार्य नहीं कर रहे, तो तुम्हें कितनी ही यश-कीर्ति मिल रही हो, वह पूर्व का पुण्य हो सकता है, लेकिन आगे तो ठोकरें खानी ही हैं जिस दिन पकड़ा जाता है उस दिन सबको मालूम चल जाता है कितना ही घोटाला कर लों यह शब्दों का मार्ग नहीं है, साधना का मार्ग हैं धन्य हो, जो ऐसे उज्ज्वल कुल में आ गयें आपको ऐसा तो नहीं लगता कि मैं ऐसे उज्ज्वल कुल में क्यों आ गया, जिससे पाप करने का मौका नहीं मिलता ? लोक में ऐसे भी लोग हैं जो जैन होकर भी कुकर्म के भाव लाते Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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