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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 439 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "रत्नत्रय-धर्म का आधार-पात्र दान" रागद्वेषासंयममददुःखभयादिकं न यत्कुरुते द्रव्यं तदेव देयं सुतपःस्वाध्यायवृद्धिकरम् 176 अन्वयार्थ :यत् द्रव्यं = जो द्रव्यं रागट्वेषासंयममददुःखभयादिकं = राग, द्वेष, असंयम, मद, दुःख, भय आदिकं न कुरुते = नहीं करता हैं और सुतपःस्वाध्यायवृद्धिकरम् = उत्तम तप तथा स्वाध्याय की वृद्धि करने वाला हैं तत् एव देयं = वह ही देने योग्य हैं पात्रं त्रिभेदमुक्तं संयोगो मोक्षकारणगुणानाम् अविरतसम्यग्दृष्टि: विरताविरतश्च सकलविरतश्चं 171 अन्वयार्थ :मोक्षकारणगुणानाम् = मोक्ष के कारणरूप गुणों का अर्थात् रत्नत्रय रूप गुणों का संयोगः पात्रं = संयोग जिसमें हो, ऐसा पात्रं अविरतसम्यग्दृष्टि: = व्रतरहित सम्यग्दृष्टिं च विरताविरतः = तथा देशव्रती च सकलविरतः = और महाव्रती त्रिभेदम् उक्तं = इन तीन भेदरूप कहा हैं हिंसायाः पर्यायो लोभोऽत्र निरस्यते यतो दाने तस्मादतिथिवितरणं हिंसाव्युपरमणमेवेष्टम् 172 अन्वयार्थ :यतः अत्र दाने = क्योंकि यहाँ दान में हिंसायाः पर्यायः लोभः = हिंसा की पर्यायरूप लोभ कां निरस्यते = नाश किया जाता हैं तस्मात् = अतएवं अतिथिवितरणं = अतिथि दान कों हिंसाव्युपरमणम् = हिंसा का त्यागं एव इष्टम् = ही कहा हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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