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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 435 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 निज करहिं अहारै' हम दान तो दे लेते हैं, लेकिन पुण्य का संचय नहीं कर पाते, क्योंकि भावों में भावना रहती है कि ऐसा तो नहीं कि हम राज-भय के कारण दे रहे हों, समाज के भय के कारण दे रहे हों ज्ञानी आत्माओ! ऐसा कभी मत करना कि सभी तो चौका लगा रहे हैं, यदि हम नहीं लगायेंगे तो लोग क्या कहेंगे? यह दान नहीं है, भय हैं इसमें भी तुम्हारा सम्मान निहित लग रहा हैं यदि आचार्य भगवन् मेरे घर पहले ही दिन आ जाते हैं तो मेरा और सन्मान बढ़ जाता हैं अहो ज्ञानी! यह दान नहीं है, यह तूने पात्र से अपने सन्मान की भावना भाई हैं दान वह था जो देने के बाद भूल गयां ध्यान रखना, संयम के योग्य और संयम-वृद्धि के लिये जो द्रव्य दिया जाता है, उसका नाम दान हैं भो ज्ञानी! आचार्य समंतभद्र स्वामी ने अतिथि-संविभाग व्रत को वैयावृत्ति में रखा है और अरहंतदेव की पूजा को भी वैयावृत्ति में रखा हैं भो ज्ञानी! यदि पात्रभक्ति है, तो व्यक्ति नजर नहीं आते हैं, वरन् निग्रंथ-दशा नजर आती हैं यदि पात्र-भक्ति नहीं है, तो आपको सागार नजर आते हैं, पात्र नजर नहीं आतें पात्र-भक्ति होती है, तो कद नहीं देखता, उम्र नहीं देखता, निग्रंथ/रत्नत्रय धर्म देखता है और जिसमें पात्र भक्ति नहीं है, उसमें स्वार्थ-वृति हैं देखा कि मंत्र-तंत्र मिल जायेंगे, इसलिए चौका लगा रहे हैं तेरा लगाना या न लगाना एक-सा हैं ये बनिये की दुकान नहीं, पात्र का दान हैं तूने अपनी मंत्र-सिद्धि के लिए दान दिया, वह दान नहीं हैं जैसी विधि आगम में लिखी है, उस उत्कृष्ट विधि से दान दोगे तो दान फलित होगां उत्तम विधि से उत्तम पात्र को सम्यकदृष्टि दान देता है तो नियम से स्वर्ग में देव ही होता है और मिथ्यादृष्टि दान देता है तो उत्तम भोग-भूमि को प्राप्त होता हैं भो ज्ञानी! आपके पास द्रव्य-लिंग की परीक्षा करने की जानकारी नहीं हैं परीक्षक वही होता है, जिसने परीक्षा उत्तीर्ण की हों जिसे यह पता नहीं कि पिच्छी कैसे पकड़ी जाती है, पिच्छी से मार्जन कैसे किया जाता है, ओहो भोगियो! तुम क्या परीक्षा करने जाओगे? हमारे आगम में साधु की परीक्षा का कथन है कि तीन दिन तक परीक्षा करना चाहिएं लेकिन वह परीक्षा आचार्य या मुनि करेंगे गृहस्थ के लिए किसी आगम में नहीं लिखा कि तुम मुनि की परीक्षा करने जानां भो ज्ञानी! वे नेत्र नहीं, काँच के गोले हैं, जिनकी आँखों से दिगम्बर साध का रूप नहीं दिखता, जिनकी श्रद्धा और विवेक की आँख फट चुकी हैं शुद्ध में ज नहीं सकते, शुभ को करना नहीं चाहते, अशुभ को छोड़ नहीं पा रहे, तो फिर पाप को धोने के लिए कहाँ जाओगे? पूर्व का पुण्य कमाकर रखा है, खा लो, लेकिन ध्यान रखना, खोखले हो जाओगें यह वीतराग-वाणी है, यह सर्वज्ञ की वाणी हैं __ भो ज्ञानी! कुंदकुंद स्वामी ने 'पंचास्तिकाय' ग्रंथ में प्रश्न किया-हे नाथ! श्रावक का मोक्षमार्ग क्या है? भगवन् लिख रहे हैं जिन्होंने मोक्ष के मार्ग को प्राप्त कर लिया है ऐसे अरहंत, सिद्ध तथा जो मोक्ष मार्ग पर लगे हुए हैं वे आचार्य, उपाध्याय और साधु, इन पाँच की उपासना करना ही श्रावकों का मोक्षमार्ग हैं इन पाँच Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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