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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 425 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जिसने दुर्गति का बंध कर लिया, उस जीव के लिए जैसा जनम-मरण होना है, उसे जिनेन्द्रदेव भी नहीं बचा पायेंगें भो ज्ञानी! एक दिन की घटना है, छिपकली जा रही थीं बल्ब जल रहा है और पतंगा भी आ गयां छिपकली को भगाया जा रहा है और पतंगा दौड़-दौड़कर छिपकली के मुँह की ओर आ रहा हैं एक बार दोनों को अलग कर दिया, लेकिन दशा देखो इस जीव की कि पुनः घूम-घाम कर आ ही गया और छिपकली ने उसको पकड़ ही लियां अहो ज्ञानियो! दीपक नहीं, बल्ब जल रहा था और कीड़े गिर रहे थे और आप 'समयसार' पढ़ रहे थे और छिपकलियाँ खा रही थीं भो ज्ञानी! तू शुद्धात्मा की बात कर रहा था, या कि हिंसा कर रहा था? ऐसे काल में वह दीपक बंद करके और आँख बंदकर तू ध्यान कर लेता, माला फेर लेता तो वह ज्यादा श्रेष्ठ होतां सोचो कि जिनवाणी पढ़ना उत्तम है या हिंसा? दोनों उत्तम नहीं हैं जीव की रक्षा करना उत्तम हैं यह किसी से मत कह देना कि कहाँ तुम यह सोले–मोले के ढोंग में हो? इतनी देर शास्त्र पढ़ लेते तो परिणाम अच्छे हो जातें भो ज्ञानी! शास्त्र का फल है-शुद्ध आहार, शुद्ध विहार और गृहस्थों के लिए शुद्ध व्यापारं क्या इतना नहीं सीख पाए? यहाँ आप जिनालय में आकर स्वाध्याय करना और दुकान पर जाकर चालीस के चार सौ करनां थोड़ी ईमानदारी भी बरतो, परिणाम में ऋजुता भी लाओं अपनी शक्ति के अनुसार भोगोपभोग में भी अब प्रमाण कर लेनां गाजर, मूली, कंदमूल, अदरक खाने वाली भगवान् आत्माओ! ध्यान से सुननां वह मगरमच्छ छोटी-छोटी मछलियों को दाँत में फँसाये रहता है, ऐसे ही जिनके मुख में बाजार की जलेबी रखी हो और कंद रखे हों और फिर माइक्रोस्कोप से देखनां जैसे घड़ियाल के दाँतो पर एक-एक मछली फँसी है, ऐसे इनके दाँतो में एक-एक जीव फँसे हैं, चबा रहे हैं और कहते जा रहे है "मैं तो त्रैकालिक शद्ध हँ" और सब त्रैकालिक की लाश को खा गयें सोचना, फिर भी ग्लानी नहीं आ रहीं रात्रि में दूध, पेड़ा, मलाई खा रहे हैं, झींगुर और चींटा इन सबकी टाँगे चबा रहे हैं, फिर भी धीरे से कह देते है कि हम तो श्रावक हैं भो ज्ञानी! यदि इतना नहीं छोड़ पा रहा, तो वह श्रावक कहलाने का पात्र नहीं हैं सामूहिक शादी-विवाह में भोजन करने जा रहे हो? भैया! उसकी भट्टियाँ रात्रि में जलती हैं दिन में खिला भी दिया, पर रात्रि में तो सब बनाया हैं इसीलिए, सामूहिक भोज करने वाले! अपने आप को मत कह देना कि मैंने रात्रि में भोजन छोड़ दिया हैं मूलाचार में सोंठ, पीपल इनको औषधि कहा हैं वह काष्ठ वनस्पति है सुखाने पर रेशे निकलते हैं वनस्पति के दो भेद किये-काष्ठ और कन्दं काष्ठ भक्ष्य है, कन्द अभक्ष्य है, ऐसा "मूलाचार"जी में लिखा हैं तो सूखी सोंठ, सूखी हल्दी भक्ष्य है, पर गीली सोंठ और गीली हल्दी दोनों को आगम में अभक्ष्य ही कहा हैं कुछ वनस्पतियाँ मूल में अभक्ष्य होती हैं, मध्य में भक्ष्य हो जाती है और कुछ वनस्पतियाँ मध्य में Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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