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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 411 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 जानां क्योंकि धर्मध्यान में ऐसा नहीं है कि भूख लग रही है या नींद भी नहीं आ रही है तो चलो टेलीवीजन खोलकर बैठें, कैसे भी समय निकालें ? जिन्हें नींद नहीं, आती वे पुण्यात्मा हैं, उस नींद का दुरुपयोग न करें अतः, सामायिक करें, जाप करें, स्वाध्याय करें; पर नींद की गोली मत खानां पागल होना हो तो खा लेना अहो! जब नींद नहीं आए तो ग्रंथ ले कर बैठ गए, उस स्वाध्याय से दो उपयोग हो गए-तुम्हें नींद आ जाएगी अथवा तुम्हारा जो दुर्ध्यान हो रहा था, वह नहीं होगां भो ज्ञानी! इस बात का ध्यान रखना कि उपवास किया है तो रोज के वस्त्रों में नहीं सोनां चटाई पर सोनां कुछ लोगों को जाप करने का शौक रहता है अतः चारपाई जिन पर तुम लोग सोते हो, उन्हीं पर माला फेरना प्रारंभ कर देते हों यह तुम्हारी द्रव्य शुद्धि नहीं हैं तनिक पलंग के नीचे बैठ जाया करो, परंतु करना उनी चादरों पर बैठकर, गद्दी पलंग पर बैठकर भगवान् की माला नहीं फेरनां प्रातः उठकर सामायिक आदि क्रिया के पश्चात स्नान आदि करके भगवान् जिनेन्द्र देव की पूजा करो, 'प्रासुकैर्द्रव्य ऐसा नहीं कि आप अप्रासुक द्रव्य से कर लो, कच्चे पानी से अभिषेक कर डालों प्रासुक द्रव्य से ही भगवान् का अभिषेक करके पूजन की जाती हैं कोई आगम में नहीं लिखा कि अभिषेक न करो, पर पूजन की विधि अभिषेक पूर्वक होती हैं वह तुम्हारी भूल है कि धूल झड़ाने के लिए भगवान का अभिषेक किया जाता हैं भगवन् अहो! आप तो स्वयं पवित्र हो, हम आपको क्या पवित्र करेंगे? लेकिन दिन में एक बार प्रभु का अभिषेक कर लिया करों समवसरण में भी चैत्य प्रसाद भूमि होती है, उसमें भी अभिषेक-पूजन सब होता हैं नंदीश्वरद्वीप में तीन-तीन बार भगवान् की आराधना होती हैं इसलिए, मनीषियो! ध्यान रखना, पुण्य अवसर को पाप में नहीं बदल देनां अपने जीवन में जो व्यवस्था जैसी हो, लेकिन आगम की विधि को ध्यान रखना, शुद्धि का लोप नहीं कर देनां द्रव्य की शुद्धि से ही परिणामों की शुद्धि बनती हैं इसी कारण व्यवहार शुद्धि अंतरंग शुद्धि का हेतु हैं जापान, कोबे स्थित श्री महावीर जैन मंदिर. Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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