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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 375 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 वर्गणाएँ तरंगे, ऊर्जा जब तुम्हारे मन में निर्मल तरंगें उत्पन्न हों, उस समय आप सबसे मिल लेना और जिस समय तुम्हारे स्वयं के परिणाम कलुषित हो रहे हों तो कमरे में बंद हो जाना; क्योंकि वर्गणाएँ आपकी कलुषित हैं आजकल कैंसर का रोगी, टीबी का रोगी अपना मुख व नाक बंद करके चलता है, इसलिए कि दूसरे को भी कीटाणु न लग जायें हम तो पीड़ित हैं ही, मेरा तो अंत होने वाला है ही परन्तु दूसरे का भी न हो जायें ऐसे ही, भो ज्ञानी! जब तुम्हारे अंदर कषाय / कलुषित भावों के रोग उत्पन्न हो रहे हों, उस समय तुम स्वयं कमरे में बंद हो जाना अथवा पट्टी डाल लेना, जिससे कम से कम दूसरे के ऊपर तो न फैल जायें भो चेतन! मोक्ष पुरुषार्थ साध्य है, असाध्य नहीं असाध्य कहोगे तो कभी भगवान् नहीं बन पाओगें अहो ज्ञानी! वही वाणी क्षमा है, जिसके जीवन में जिनवाणी घुल-मिल रही है, लेकिन अंतरंग में किसी जीव के प्रति कलुषित भाव मत लानां सामने वाला क्षमा करे या न करे, यह उसका विषय है, पर आप यह देखो कि कर्मबंध किसका होगा? इसलिए हम उसके ऊपर दृष्टि न डालें हम यह दृष्टिपात करें कि मेरे परिणामों का आनंद समाप्त न हों साधुजन तो दिन में मनुष्य भर से नहीं, वरन् एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय आदि सभी जीवों से क्षमा माँगते रहते हैं आप तो वर्ष में एक बार कहते हैं- " खम्मामि सव्व जीवाणां वह तो दिन में तीन-तीन बार जब-जब प्रतिक्रमण करेंगे, जब-जब सामायिक करेंगे तो सबसे पहले समता धारण करेंगें क्योंकि क्षमा नहीं होगी तो उनकी सामायिक नहीं हो पायेगीं मनीषियो ! साधु का सामायिक चारित्र होता है, समता ही सामायिक होती हैं सामायिक एक शिक्षा व्रत है और साधुजन के लिये सामायिक चारित्र हैं भो ज्ञानी ! " खम्मामि सव्व जीवाणां" इस सूत्र को अपने जीवन में उतारना शीतल चंद्र (सोलह सपने) Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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