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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 373 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 कषाय को पीना सीख लेनां जो पीना सीख लेता है, वह बहुत बड़ा ज्ञानी हो जाता हैं यदि कषायों की कलुषता नहीं जाती, तो तुम्हारा अहित सुनिश्चित हैं आचार्य बट्टकेर स्वामी ने 'मूलाचार' में लिखा है कि ऐसे काल में यदि उद्वेग आता है तो, भो चेतन! उस उद्वेग को तुम परिवर्तित कर दो, क्योंकि तेरा तो अहित हो चुका है, लेकिन अब जो निर्मल नमोस्तु शासन है, उस पर आँच न आयें जब हम शुरू-शुरू में संघ में आये, तो आचार्यश्री कहने लगे ध्यान रखना, तुम धर्म की प्रभावना कर सको या नहीं कर सको, लेकिन एक जीव के प्रति भी तुम्हारे शरीर के द्वारा अनास्था भाव न आने पाएं यहाँ तक कहा कि इस वीतराग शासन के कारण तुमको कष्ट आ सकते हैं, उनको झेल लेना, लेकिन नमोस्तु शासन पर उपसर्ग नहीं आना चाहिएं देखना, माँ जिनवाणी का दुलार और गुरु का प्यार शिष्यों को भगवान् बना देता हैं एक दिन आचार्य महाराज बोल पड़े पुस्तक के कीड़े कब तक बने रहोगे? कुछ बाहर का पढ़ना भी सीखों उस समय समझ में नहीं आया कि पहले तो आचार्य महाराज कहते थे कि पढ़ा करो, जब पढ़ने लगे तो कहते हैं कि बाहर का पढ़ो और अंदर जो विकृति आ रही है, उसे प्रकृति से दूर करों इसीलिए अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं कि अब तुम्हें धर्म की रक्षा करना है तो बाड़ी लगा दो, क्योंकि अँकुर उत्पन्न हो चुके हैं जब आपने रात्रिभोजन आदि छोड़ दिये हैं, बहुत सारी चर्चा धर्म की कर ली है और अब धर्म तुम्हारी आत्मा की ओर बढ़ रहा है तो बाड़ी लगा लो ताकि कोई असुरक्षा न हो जाएं भो चेतन! इस आत्म-नगर में कषायरूपी चोर प्रवेश न कर जाएँ नगर विशाल है, रत्नों की खान है, दर्शन-ज्ञान- चारित्र यह तीन रत्न रखे हैं इसमें यदि मिथ्यात्व प्रमाद असंयम, योग, कषायरूप चोरों ने प्रवेश कर लिया तो नगर उजड़ जायेगा, खोखला हो जायेगां मनीषियो! हमारी आकाँक्षाएँ जब बहुत बढ़ जाती हैं और उनकी पूर्ति नहीं हो पाती है, तो वह क्रोध के रूप में प्रकट होती हैं यदि आप संतोष को जन्म देना चाहते हो तो अपनी आकाँक्षाओं व अपेक्षाओं को सीमित करते जाओ, आपको गुस्सा नहीं आयेगां यदि संतोष रख लिया तो चारों कषाय दब जायेंगी और यदि संतोष नहीं आया, तो ध्यान रखो, चारों कषाय भड़केंगी, जो एक साथ तुमको मिथ्यात्व की ओर ले जायेंगीं ध्यान रखो, जीवन में कषाय हुई तो संयम गया और अश्रद्धा हुई तो सम्यक्त्व गयां कार्तिकेय - अनुप्रेक्षा' एवं 'परमात्म प्रकाश' ग्रंथों में आचार्य महाराज ने स्पष्ट लिखा है : जीवो वि हवेइ पावं, अइ-तिव्व कसाय- परिणदो णिच्च जीवो वि हवेइ पुण्णं, उवसम-भावेण संजुत्तो 190का.अ. जिस समय कषाय परिणति है, उस समय पाप जीव है एवं असंयम परिणति हैं कषाय की मंदता ही संयम है, परंतु जिस गुणस्थान में जैसी हो इसका ध्यान रखनां लेकिन तत्क्षण परिणामों की निर्मलता का Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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