SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 333 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 वही तो त्याग हैं साधुसमाधि, वैय्यावृत्ति, अहंत-भक्ति, बहुश्रुत-भक्ति, आचार्य-भक्ति, प्रवचन-भक्ति आदि सोलह भावनाएँ सभी प्रवचन-भावना पर टिकी हुई हैं मनीषियो! विश्व में सबसे बड़ा प्रवचनकर्ता कोई है तो तीर्थंकर अहंतदेव हैं प्रवचन भक्ति का यह प्रभाव है कि वर्द्धमान जिनेन्द्र की दिव्यदेशना जब श्रेणिक सुनता है तो गद्गद् हो जाता हैं मिथ्यात्व की वह कणिका जो मुनिराज यशोधर के चरणों में गिर चुकी थी, वह सब भगवान महावीर के समोवशरण में धुल गयीं नरक आयु का वह बंधक क्षायिक-सम्यकत्व को प्राप्त कर लेता है और सातवें नरक की आयु को क्षीण करके प्रथम नरक की चौरासी हजार वर्ष की आयु को प्राप्त कर लेता भो ज्ञानी! जिनदेव की देशना को भूल मत जानां जब भी आपको ममता की माँ पुकार रही हो तो उस समय समता की माँ (जिनवाणी माँ) आपको वहाँ से निकालकर समीचीन मार्ग पर रख देगी ध्यान रखना, जो एक बार जिनवाणी माँ की गोद में आ गया, वह कभी माँ की गोद को छोड़कर नहीं जायेगां जीवन में परिग्रह किसी का न हुआ, न होगां ममता बढ़ने से विषमता आ जा जाती हैं आप जितना ज्यादा कमाकर लाओगे, उतने शत्रु बनाकर जाओगें मनीषियो! द्रव्य तुम्हारे प्राण भी छिनवा सकता हैं अहो! उस मृग से पूछो, जो कस्तूरी के पीछे अपने प्राणों को नष्ट कर देता हैं उस हाथी से पूछो, गजमुक्ता के पीछे जिसके प्राण चले जाते हैं तुम तो बहुआरंभ परिग्रह से युक्त परिणति बनाकर बैठे हो, यदि आयु-बंध आ गया तो नियम से नरक-आयु का बंध होगा, फिर कोई रोकने वाला नहीं हैं तीर्थंकर के समवसरण में बैठे राजा श्रेणिक ने भले ही साठ हजार प्रश्न किये हों, परंतु वे भी नरक-आयु को समाप्त नहीं कर पाएं उन्हें भी नरक जाना ही पड़ां भो ज्ञानी! मोक्षमार्ग पर पुरुषार्थ किया नहीं, ममता व परिग्रह तथा भोगों को छोड़ा नहीं और कहने लगे कि योग-धारण की काललब्धि नहीं आयीं इसीलिए आचार्य भगवान् अमृतचंद स्वामी कह रहे हैं कि आत्मकल्याण में छल पूर्ण भाषा का उपयोग निज से छल हैं मनीषियो! शक्ति तो आपके अंदर त्रैकालिक है, पर आप अपने वीर्य को छिपा रहे हों इस ताकत को मत छिपाओं तेरे पास तो लोकालोक को प्रतिबिंबित करनेवाली शक्ति हैं उसी का नाम तो सैंतालीस शक्तियों में स्वच्छत्व की शक्ति हैं जो कि बिल्कुल निर्लिप्त हैं अहो! स्फटिकमणी के ऊपर कितनी ही धूल फेंक दो, उसमें कोई मलिनता नहीं आयेगीं ऐसे ही यह कर्म कितने ही खुश हो जायें, वे तुमको एक सौ अड़तालीस प्रकृतियों से अलग नहीं होने देंगें लेकिन स्वच्छत्व की शक्ति कहती है कि तुम कितनी ही कर्मों की धूल फेंको, वह ऐसी है जैसे दर्पण पर चढ़ी रजं वह उसके प्रतिबिम्बि धर्म को नष्ट नहीं करती ___ भो ज्ञानी! आचार्य महाराज ने परिग्रह के दो भेद किये हैं, अतंरंग-परिग्रह और बहिरंग-परिग्रह बहिरंग-परिग्रह के सचित्त, अचित्त, मिश्र-यह तीन भेद हैं सचित्त-परिग्रह यानि स्त्री, पुत्र, गाय, भैंस आदि जो Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy