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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 305 of 583 निकालते हैं इसी प्रकार, आय तो बड़े मुख से करना चाहिये और व्यय संकरी टोंटी से करना चाहिये, तब तुम समाज को चला सकते हों जैसे पैसे में लोभ करते हो, वैसे वाणी में लोभ करो, व्यर्थ मत बोलों भो ज्ञानी! दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करना, रखी हुई या किसी की पड़ी हुई, भूली हुई वस्तु पर का द्रव्य हैं आपने उठाकर रख लियां सुनो! जिसकी गुमी सामग्री है, उससे पूछना कि कैसे तड़फता है? जिसका कोई स्वामी नहीं होता है, उसका स्वामी शासन होता हैं भूमि का द्रव्य आपका नहीं होता, शासन का होता हैं घर में घड़ा निकला, क्या करोगे? जाओगे शासन को देने? नियम बड़ा कठिन हैं क्या कहेंगे? पुण्य के योग से मिला हैं लेकिन जिस दिन पकड़े गये उस दिन पता चल जायेगा कि पुण्य कितना बड़ा था? गुणभद्र स्वामी ने 'आत्मानुशासन' ग्रंथ में स्पष्ट लिखा हैं शुद्धेर्धनैर्विवर्धन्ते सत्तामपि न संपदः न हि स्वच्छाम्बुभिः पूर्णाः कदाचिदपि सिन्धवः 45 समुद्र कभी शुद्ध जल से नहीं भरा, नालों से भरा हैं ऐसे ही जितनी विभूतियाँ विशाल दिख रही हैं, इधर-उधर के छल-कपट से ही भरी हैं कोई गरीब रख गया धरोहर और सेठजी के मन में आए 'अब वह कभी न आए' जितने वैद्य हैं, सब निरोग कर रहे हैं यदि परिणाम निर्मल हैं तो श्रेष्ठ, नहीं हैं तो कहो कि ठंडी का मौसम आ गयां सीजन नहीं चल रहां महाराज! बीमारी बढे तो हमारा सीजन चलें आचार्यों ने कितना सूक्ष्म लिखा है कि तुम न्याय करना, पर अन्याय की मत सोचनां रोगी बनाने के विकल्प नहीं लानां भो ज्ञानी! जैसे एक निर्ग्रथ योगी अपने परिणामों को संभालकर रखता है, ऐसे ही आप लोगों को उस समय परिणाम संभालने की आवश्यकता हैं यह अणुव्रतों की चर्चा है, जो पहले सच्चा श्रावक बनता है, वही सच्चा योगी बन सकता हैं आचार्य महाराज ने अचौर्य व्रत की चर्चा की है कि चोरी करना भी हिंसा ही है, क्योंकि व्यक्ति को प्राणों से भी प्रिय अपना धन होता हैं अतः दूसरे के धन का हरण करना उसके प्राणों को हरण करने के तुल्य हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी का यह पहला ग्रंथ है जहाँ धन को प्राण लिखा है, क्योंकि व्यक्ति को पैसा प्राणों से भी अधिक प्रिय होता हैं इसलिये किसी की रखी हुई, पड़ी हुई, भूली हुई गिरी हुई वस्तु उठा नहीं लेना यदि आपको मालूम चल जाये कि अमुक व्यक्ति की है, तो उसको दे देना, लेकिन अपने घर में रखने के लिये नहीं उठानां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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