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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 292 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 इतने बुजुर्ग हो, और इन लोगों से अच्छा बोल लेते हो, आप ही प्रतिष्ठा कर लेते तो क्या दिक्कत थी? बोले-महाराज जी! वक्तृत्व कला भिन्न हैं मैंने गुरुओं की कृपा और जिनवाणी के सतत् अध्ययन से वक्तृत्व कला को प्राप्त कर लिया, पर मैंने प्रतिष्ठा-ग्रंथ में पढ़ा था कि यदि विधिपूर्वक प्रतिष्ठा नहीं करवा पाये तो प्रतिष्ठाचार्य नरक जाता हैं महाराज! जिस दिन से हमने पढ़ लिया तो हमें योग्यता महसूस नहीं हुईं मैं प्रतिष्ठाचार्य के साथ रह सकता हूँ, लेकिन मुख्य-प्रतिष्ठाचार्य नहीं बनूँगां पंडितजी की लघुता देखकर मेरा हृदय खिल गयां देखो, यदि वह चाहते तो प्रतिष्ठा करा सकते थे अतः, जिस विषय में अपनी सामर्थ्य नहीं है, उसका अभ्यास तो करते रहना चाहिए, लेकिन उसके विशेषज्ञ नहीं बनना चाहिएं एक वैद्य ऊँट का उपचार करने पहुँचें वह दो दिन से घास नहीं खा रहा थां वैद्य बहुत समझदार थां उसने शरीर को देखा और जब गले पर हाथ फेरा, तो उसने पूछा-भैया! ये बताओ इसे तीन दिन पहले कहाँ चराने ले गये थे? बोले-कछवारी में तरबूज थे, उधर चर रहा था बस, वैद्य समझ गयां उसने कहा-ठीक है, आप इसको छोड़ दो और एक मुगरिया लाओं वैद्य ने ऊँट को लिटा दियां उसके गले के नीचे जहाँ वह फूला था, वैद्यजी ने मुगरिया मार दी तरबूज जो अड़ गया था तो फूट गयां ऊँट झट मुँह चलाकर खड़ा हो गयां कम्पोंडर-साहब ने सोचा कि इनकी नौकरी करते-करते जीवन चला जा रहा हैं डाक्टरी कुछ नहीं है, मुगरिया मारो, पैसा कमाओं अतः कम्पोंडरी छोड़ दी, वैद्यखाना खोल दियां भाग्य से एक बुढ़िया माँ के गले में पीड़ा थी, सूजन आ गईं उनने कहा-ठीक है, चलो पहले मुगरिया लाओ और एक काठ लाओं बेचारी बुढ़िया को मार दियां भो ज्ञानी आत्माओ! देखा-देखी और पुस्तकों से वैद्य बन गये होते तो वैद्यों की और अध्यापकों की, मेडीकल कॉलेजों की कोई आवश्यकता नहीं थीं ऐसे ही ग्रंथों से ज्ञान हो जाता तो निग्रंथों की कोई आवश्यकता नहीं थीं __ मनीषियो! ध्यान रखो, गुरु-चरणों के सान्निध्य में जाये बिना सम्यज्ञान हासिल नहीं होतां जब तक आप गुरु नहीं चुनोगे, तब तक स्वयं भटकोगे और दूसरों को भटकाओगें नास्ति को अस्ति में लगाओगे और अस्ति को नास्ति में जब तक आलाप-पद्धति, बोलने की शैली का ज्ञान नहीं होगा, तब तक आप नय-चक्र को समझ नहीं पाओगे और नय-चक्र के अभाव में सत्य निर्णय नहीं कर पाओगें बैल को घोड़ा कह देना भी झूठा हैं बैल को घोड़ा कहने पर घोड़ा तो घोड़ा ही रहेगा और बैल भी बैल ही रहेगां मनीषियों! हम असत्य का उपयोग कर समझते यही हैं कि हम सत्य बोल रहे हैं इसीलिए अपने जीवन में परमसत्ता को प्राप्त करना हो तो परमसत्य को प्राप्त कर लेनां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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