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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 276 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 कर रहे हो, उसका उत्तर तुम्हारे पास नहीं हैं यह सब किसके लिये है? ये सब तेरे साथ नहीं चलेंगें इनके साथ आप भी जाओगे नहीं भो ज्ञानी! गुरु नहीं हैं, पंचपरमेष्ठी नहीं हैं, तो बाहर के द्रव्य तुम्हारे साथ हैं; किसके लिये? सब यहीं के संबंध हैं और संबंध जो-जो होते हैं, वह सब असत्यार्थ होते हैं ये संबंध अभूतार्थ हैं, भूतार्थ नहीं हैं संबंध किसके लिये? जब आपने किसी से कहा-आइये साहब बैठियें जिससे आइये कहा है, वह पुद्गल की पर्याय हैं जिसका आपने आह्वान किया है, जो चर्म-चक्षु से दिख रहा था, वह पुद्गल थां इसीलिये पर्याय ने, पर्याय को, पर्याय से, पर्याय के लिये, पर्याय में तुमने सत्कार किया हैं अतः पर्यायों का सत्कार करने वाला पर्याय में ही भटकता है और जो पर्यायी का सत्कार करता है, वह परमात्मा बन जाता हैं जिसने आज तक पर्याय का सम्मान किया है, पर्याय का दुलार किया है, पर्याय को पुकारा है, पर्याय को पुचकारा है, वह पर्यायों में पड़ा हुआ हैं भो ज्ञानी! षट्कारक की व्यवस्था को समझ लों बिना षटकारक के कोई भी वस्तु व्यवस्था नहीं बनती कुंभकार प्रथम कारक कर्ता है और कुंभकार कहता है कि मिट्टी कर्म-कारक हैं मिट्टी से सम्प्रदान कहता है कि पानी भरने के लिये घट क्यों बनाया ? अपादान कह रहा है कि पानी को पीने के लिये बनायां अधिकरण कहेगा कि अपने घर में बैठकर बनायां ये भेदकारक हैं अब अर्थ कारक की चर्चा करों अहो कुंभकार! तू कर्त्तत्व भाव में लीन है कि तूने घट बनायां तेरा चर्म घट में है या तेरा धर्म घट में है? तेरा अंश-मात्र भी घट में नहीं हैं आँखों से निहार लो, देख लो, कहीं लेशमात्र भी कुंभकार नहीं हैं तो घट को किसने बनाया? मिट्टी ने, मिट्टी को, मिट्टी के द्वारा, मिट्टी के लिए, मिट्टी से घट को निर्मित कियां यह अभेद षट्कारक हैं सैंतालीसवीं शक्ति कहती है कि षट्कारक लगा दों किसने बनाया? स्वयं ने बनायां किसको बनाया? स्वयं को बनायां किसके द्वारा बनाया? स्वयं के द्वारा किसके लिये? स्वयं के लिये किससे? स्वयं से किसमें रचना की तूने? स्वयं में बैठकर मैंने स्वयंभू की रचना की वह मेरा स्वयंभू हैं अज्ञानियो! वस्तुओं में आत्मा भी एक वस्तु हैं व्यक्ति तो पर्याय है, वस्तु द्रव्य हैं आचार्य कार्तिकेयस्वामी ने धर्म की परिभाषा में "वस्तु स्वभावो धम्मो" कहां अरे, चवालीसवीं शक्ति में भी कहा हैं भो चेतन! तू स्वचतुष्ट्य में हैं अरे! एकान्त में बैठ जाना, फिर कहना यह सब किसके लिये? जब चवालीसवीं शक्ति का चिंतन आप करें तो अपनी आयु कर्म को सामने रख लेनां जैसे बालों की कंघी के समय दर्पण को सामने रख लेते हो, ऐसे ही आयु कर्म को सामने रख लेना, फिर चर्चा प्रारंभ करनां शिशु-अवस्था निकल गई, किसके लिये? अब प्रौढ़ हो गये, किसके लिये? जो कुछ हो रहा है, किसके लिये? मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, लोभ किसके लिये? व्रती तू बना, किसके लिये? लगता है तुझे शक्तियों का भान नहीं हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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