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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 272 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 ही कहे हैं अरहंत मंगल, सिद्ध मंगल, साधु मंगल और केवलीप्रणीत जिनशासन मंगल हैं इन चार मंगलों के अलावा विश्व में कोई मंगल-आयतन नहीं हैं जिस स्थान पर इनकी आराधना हो रही है वे तो मंगल आयतन हैं और जहाँ इनकी आराधना नहीं हो रही है, वे अमंगल आयतन हैं भो चेतन! जहाँ अहिंसा, सत्य, संयम है, वह धर्म-मंगल हैं अन्यथा मंगल-नाम मोक्ष का कारण नहीं हैं किसी का नाम आपने वर्धमान रख दिया, तो क्या आप तीर्थंकर वर्धमान हो गये? तीर्थंकर वर्धमान तो वह ही थे, जो सिद्धार्थ के बेटे थें ध्यान रखना, लोक में आँक का दूध भी होता है, गाय का दूध भी होता है, वृक्षों का भी क्षीर होता हैं आँखों में जलन पड़े तो दूध का फोहा (रुई को दूध में भिगोकर) रख लो, पर आँक के दूध से आँख ठीक नहीं होती है, उससे आँखें फूट जायेंगी इसी प्रकार से धर्म नाम से धर्म नहीं होता हैं धर्म के गुण जब तक नहीं हैं, तब तक धर्म, धर्म नहीं हैं धर्म वही है, जिसमें अहिंसा हों भो ज्ञानी! जहाँ अहिंसा विराजी है, जहाँ वात्सल्य विराजा है, वहाँ देव, शास्त्र, गुरु तीनों विराजें हैं वह ही मंगल है और वही उत्तम हैं सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह यह अहिंसा के लिये ही बनाये गये हैं और यह सब अहिंसा का ही कथन करनेवाले हैं अहिंसा से बढ़कर न कोई सत्य हैं न कोई अचौर्य है, न ब्रह्मचर्य है, न अपरिग्रह हैं संक्षेप में इतना समझ लेना कि जैसे हिंसा पाप है, ऐसे पाँचों ही पाप हैं और परिग्रह पाँच पापों का सरदार हैं जितने अनर्थ करा रहा है, हिंसा करा रहा है, परिग्रह ही करा रहा हैं परन्तु लोग पाँचवे पाप को पाप ही नहीं समझ रहें जबकि बहुआरंभ व परिग्रह का संचय करने से तथा उसमें राग की तीव्रता से नरक आयु का बंध होता हैं इसीलिये ध्यान रखना, जिसके पास बाहर की विभूति है, वही परिग्रह है; ऐसा सर्वथा नही है क्योंकि मूर्छा परिग्रह हैं यहाँ पर कोई यह माने कि बाहर पुद्गल पर पुद्गल, मूर्छा के अभाव में हैं पर यह कैसे संभव है कि मूर्छा न हो, और द्रव्य रहे? अरे! अंदर में तो कुछ नहीं, कपड़े तो ऊपर ही ऊपर पड़े हैं सत्य तो यह है कि वसन तभी तक है, जब तक वासनाएँ हैं यदि वासनाएँ उतर जायें तो वसन उतरने में देर नहीं लगेगी काललब्धि को तेरा पुरुषार्थ ही बुलायेगा, तेरा पुरुषार्थ ही तेरी काललब्धि बनायेगां भाग्य भी पुरुषार्थ से ही हैं जिस समय जो कार्य हो, वह ही होनहार हैं अतः काललब्धि तभी आयेगी जब तुम वासना को उतारोगे, इसके पहले आने वाली नहीं हैं भो ज्ञानी! यदि कोई जीव अनेक दुःखों से पीड़ित है तो आप सोचते हो कि भगवान इसे जल्दी उठा लें ओहो! वह तो तभी उठेगा जब उसको आयुकर्म उठायेगां लेकिन आपने तो अपने भावों से एक जीव को उठा दिया, पंचेन्द्रिय का घात कर डालां अतः, खोटे शब्द कभी मत बोलनां दुःखी जीव दुःखी जरूर है, लेकिन वह तुम्हारे द्वारा जबरदस्ती मरना नहीं चाहतां इस तरह मरना कोई समाधि नहीं है, यह तो आत्मघात हैं शुद्धात्म-चिंतन में लीन होकर आयु-कर्म का क्षय होने पर, परमेष्ठी का ध्यान करते हुये, प्राणों के वियोग होने का नाम समाधि हैं यदि आप ऐसा कहते हो कि अच्छे चले गये, क्योंकि वे बहुत कष्ट में थे, अरे! तुम Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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