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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 267 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 दूर करने को, परन्तु आप सब शांत बैठे हों वे विष्णुकुमार तो अकम्पनाचार्य के संघ के नहीं थे, यदि वे भी सोच लेते कि कौन हमारे संघ के साधु हैं? लेकिन यहाँ संघ नहीं, दिगम्बर धर्म था जहाँ श्रमण दिखते है, वहाँ धर्म होता है, जहाँ संघ दिखते है, वहाँ धर्म होता ही नहीं हैं भो ज्ञानी! आपको तीर्थ दिखेंगे तो धर्म दिखेगा, अन्यथा आपको भेद की दीवार ही खड़ी दिखेगी कमठ का उपसर्ग दूर हुआ और प्रभु को कैवल्य-ज्योति प्रगट हो गईं देखो संसार की दशा, जिसे तुम शत्रु कहते हो, उपसर्ग करनेवाला कहते हो, उस कमठ को सम्यगदर्शन प्राप्त हो गयां अहो! उपसर्ग करनेवाले ने केवली बना दिया और स्वयं को सम्यकदृष्टि बना लियां ध्यान रखना, जिन-जिन ने उपसर्ग किये वे सब सम्यकदृष्टि बन गयें वे प्रभु साधना करते हुए, विहार करते हुए सम्मेदाचल पर पहुँचे और योगों का निरोध कर श्रावण शुक्ला सप्तमी को चरमोत्कर्ष फल निर्वाणश्री को प्राप्त कियां भो ज्ञानी! वे पारसनाथ हमें शिक्षा देकर चले गये कि, हे साधको! तुम हमारी निर्वाण-पर्याय को मत देखो, कैवल्य-पर्याय को मत देखो, तुम हमारी उस पर्याय को देखो, जिसदिन उपसर्ग चल रहा था तुम्हें उससे सम्बल मिलेगां यह मोक्षमार्ग है, ये घबराने का मार्ग नहीं हैं भो चेतन! चितवन कर लेना, पर धैर्य को मत छोड़ देनां पारसनाथ के निर्वाण दिवस महोत्सव पर इतना सीख जाना कि, हे पारसनाथ! वह शक्ति मेरी आत्मा में प्रकट हो, जिस शक्ति से आपने कमठ-जैसे शत्रु के उपसर्ग को सहन कर निर्वाणश्री का वरण किया हैं हे जिनदेव! आपके गुणों की संपत्ति मुझे भी प्राप्त हो जाएं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि ऐसी निर्वाणश्री की प्राप्ति तभी होगी, जब अहिंसा-सखी तुम्हारे साथ होगी। भो चेतन! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने कितना गहरा चितंन किया है? संसार में कितने प्रकार के विचित्र लोग होते हैं कि नागपंचमी में सर्प को पूजने जाएँगे और घर में निकल आये तो लाठी लेकर पहुँच जाते हैं देश में खोज करना कि वर्ष में सर्प के काटे कितने मरे हैं और इन मनुष्यों ने कितने सो को मारा है? विचार करो, एक जीव को मारकर क्या बहुतों की रक्षा की जाएगी? सर्वज्ञ शासन में यह जिनोपदेश है कि लोक में सर्वत्र अपनी रक्षा बात की जाती है, परंतु वीतराग वाणी कहती है कि "जिओ और जीने दो", अपनी रक्षा तो करो, पर किसी के प्राणों का हरण मत करों क्योंकि हिंसक को मारना भी हिंसा ही हैं उसको भी कभी नहीं मारना अहो! कोई तड़प रहा है, शरीर में कीड़े पड़ गये हैं तो इंजेक्शन लगा दो जल्दी, जिससे इसकी मौत हो जाएं हे अज्ञानियो! ऐसा कर मत बैठनां तुमने दया कहाँ की? यह मत कहना कि हमने कष्टों से दूर कर दियां उसे तो तुमने समय से पहले मार दिया, तुमने उसकी पर्याय को नष्ट किया कि उसके कर्म को नष्ट किया? जितना कर्म सत्ता में रखा है, वो भोगना पड़ेगा इसलिए किसी पीड़ित को जहर का इंजेक्शन मत लगा देना, ऐसी करुणा मत कर लेनां कोई तड़पता हो तो "णमोकार' मंत्र" सुना देनां जितनी बने, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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