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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 26 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 भो चेतन ! तथ्य को तथ्य ही समझना, तथ्य को कथ्य ( कथनी ) मात्र मत समझों ये ध्यान रखो, यदि यह समझ में आ गया, तो आगे आत्मा भी समझ में आयेगी और संयम भी समझ में आयेगां क्योंकि जिस वचन में कोई अर्थ निहित हो, जिस वचन में कोई तथ्य निहित हो, जिस वचन को सुनकर व्यक्ति के अंतरंग में विशुद्धता की लहर दौड़े, उसका नाम 'प्रवचन हैं इसलिए ध्यान रखना, कि सच्चे देव, सच्चे गुरु का वचन प्रवचन है, वही जिनवाणी है, वही जिनदेशना है और वही परमागम हैं जिसमें स्यादवाद शैली नहीं है, उसे 'परमागम' शब्द से अंकित मत करों उभयनय विरोध ध्वंसिनि स्यात्पदड़. के जिन - वचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्चै रनवमनयपक्षा क्षुण्णमीक्षन्त एव ं 4 ( अ.अ.क.) अमृतचन्द्र स्वामी ने जब 'समयसार के ऊपर 'अध्यात्म अमृत कलश लिखा, तो सबसे पहले उन्होंने वहाँ पर भी स्पष्ट लिखा है, हे प्रभो! आपका स्यात् पद विरोध का मंथन करने वाला हैं स्यात् यानि कथंचित्. स्यात् यानि अपेक्षा और वाद् यानि शैलीं जिसमें स्यात् पद जुड़ा होवे ऐसी शैली से चर्चा करना इसलिए याद रखना, जैनदर्शन कहता है कि ऐसा भी है, और एकांत हो तो ही लगानां सब जगह स्यादवाद भी नहीं लगतां भो ज्ञानी! जो सम्यक् एकांत हैं, उन सभी का समूह ही अनेकांत हैं यदि सम्यक' शब्द नहीं जुड़ा है तो वह एकांत मिथ्या हैं एकांतनय ही मिथ्यात्व हैं बोले- महाराजश्रीं मैं तो भगवान् की पूजा करता हूँ, गुरुओं को भी दान देता हूँ लेकिन मैं यह लोक-परलोक नहीं मानतां भो ज्ञानियो! अब मिथ्यादृष्टि की खोज करने कहाँ जाऊँ ? समझनां करता सब कुछ हूँ, लेकिन यह नहीं मानता कि स्वर्ग होता है, नरक होता है, मोक्ष होता हैं मिथ्यादृष्टि देवों के भवनों में भी अरिहंत देव की प्रतिमायें होती हैं और वे देव भी अरिहंत की प्रतिमाओं की पूजा करते हैं, लेकिन वे मानते यही हैं कि यह मेरे कुल - देवता हैं अरे! यह ध्यान रखना, जितने लोग भगवान् जिनेन्द्र की वंदना करें, जिनवाणी सुनें, इन्हें कुल - परम्परा मानकर नहीं, अपितु इन्हें धर्म की व्यवस्था मानकर करें यदि कुल परम्परा मानकर चलोगे, तो कुल परम्परा में कुल - गुरु बन जायेंगे, कुल देवता बन जायेंगे और कुल के शास्त्र बन जायेंगे, परंतु कुल-कोटियों का विनाश नहीं कर पायेंगें कुल कोटियाँ साढ़े निन्नयानवे लाख करोड़ हैं यदि इनमें भटकना नहीं है, तो उन्हें 'देवाधिदेव' मानकर पूजनां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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