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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 256 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! पिता पुत्र से नहीं मिल रहा है, ऊपर नीचे रह रहे हैं माता बेटी से बात नहीं कर रही है, यह कैसा आत्मा का धर्म है? इसीलिए ध्यान रखो, आत्मा का धर्म तो अहिंसा है, करुणा है, दया है, प्रेम है, वात्सल्य हैं ध्यान रखना, भीड़ तो धर्म के नाम पर जुड़ जाती हैं किसी को अपना स्वार्थ सिद्ध करना हो तो धर्म का नाम ले लो और जो कुछ करना हो सो कर लों नहीं ये वीतराग-धर्म है, यह वीतराग विज्ञान का धर्म है, इसमें रूढ़ियों को कोई स्थान नहीं हैं अतः, प्राणियों की हिंसा नहीं करनी चाहिएं 'गीता' में स्वयं नारायण कृष्ण ने कहा है कि- हे पार्थ! प्रत्येक प्राणी अपने कर्म का फल स्वयं भोगता है, कोई किसी के सुख या दुःख का दाता नहीं हैं तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है-कर्म प्रधान विश्व कर राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखां आचार्य भगवन् अमितगति स्वामी 'भावनाद्वात्रिशक्तिका' में लिखते हैं: स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा, फलं तदीयं लभते शुभाशुभम् परेणदत्तं यदि लभ्यते स्फुटं, स्वयं कृतं कर्म निरर्थकं तदा 30 अहो ज्ञानियो! स्वयं के किये कर्म स्वयं भोगोगे, दूसरों का किया दूसरा भोगता हैं इसलिए ध्यान रखना, जीवों का वध करके यह कहना कि यह शिवालय चले जायेंगे, यह बहुत बड़ी अल्पज्ञता होगी इसलिए कभी भी धर्म के नाम पर किसी जीव का वध नहीं करनां इस प्रकार अविवेक से ग्रसित जिसकी बुद्धि है-ऐसी दुर्बुद्धि को प्राप्त करके भी किसी जीव की हिंसा नहीं करना श्री पद्मप्रभु भगवान, बाड़ा, पदमपुरा, जयपुर, राजस्थान. Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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