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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 254 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 का फल क्या होगा और नरक की प्राप्ति किसको होगी ? मनीषियो! यह श्रमण- संस्कृति है, यहाँ तलवार का वार तो दूर, तलवार का विचार करना भी तुम्हारे लिए हिंसा हैं तलवार मकान में रखना भी हिंसा है, क्योंकि रखी क्यों है? उद्देश्य क्या है? जिस आगम में यह लिखा हो कि प्रभु की भक्ति के परिणाम कर लेना भी शुद्ध-उपयोग की हिंसा है, उस आगम में किसी जीव का वध करने को अहिंसा कैसे कहा जा सकता है? जिनवाणी कह रही है कि तुम किसी से यह भी मत कहो कि आपने लम्बा शब्द बोल दिया, क्योंकि उस शब्द को सुनकर उसके हृदय में ठेस पहुँच गईं अगर तुम्हें समझाना है तो धीरे से कहों जोर से बोलने में मर्मभेदी शब्दों का उपयोग कर देना तो महाहिंसा हैं कभी-कभी आप किसी का वध नहीं करना चाहते, परंतु उसको बिना मारे भी नहीं छोड़ना चाहते हो, तो एक ही उपाय है कि उसके संयम के बारे में, उसके चारित्र के बारे में उससे ऐसे शब्द बोल दो कि वह कभी जीवन में सिर नहीं उठा पायेगा, क्योंकि बोली गोली से ज्यादा कठोर होती हैं हे भावी भगवन्त आत्माओ! महापुराण में लिखा है कि बड़ी मछली छोटी मछली को निगल रही है, परंतु उस मछली को ज्ञान नहीं है कि मेरे सामने मगरमच्छ हैं हे छोटी मछलियो! तुम मत घबराओ, परिणाम खराब करके भाव-हिंसा मत करों क्योंकि द्रव्य हिंसा करने की ताकत तुम्हारे अन्दर है नहीं अतः, भाव-हिंसा करके तुम सातवें नरक का बंध मत कर लेनां आप 'तन्दुल मच्छ' मत बन जानां राघव-मच्छ तो मछली खाकर नरक जा रहा है, तुम खाने की सोच-सोच के नरक जा रहे हों खजुराहो के म्युजियम में प्रत्येक वेदिका पर एक-एक टेलीविजन सेट है, आप सोचो कि कोई नहीं देख रहा, धीरे से एक प्राचीन सिक्का निकाल लूँ अथवा कोई प्रतिमा जेब के अंदर रख लूँ भो ज्ञानी! तुम क्या कर रहे हो, बाहर सब दिख रहा हैं हो सकता है खजुराहो में लगे टेलीविजन कैमरे फैल हो जायें, लेकिन केवली के ज्ञान का कैमरा इतना विशाल है कि तुम कमरे के अंदर कमरे में छिपकर कितने ही गुप्त कृत्य कर लेना, वहाँ जैसे ही तुमने स्पर्श किया, उन कर्मों ने बांध लियां केवली के कैमरे में यह भी झलक रहा है कि तुम क्या सुन रहे हो और क्या करने की सोच रहे हों मोहनीय-कर्म-राजा के सैनिक चारों ओर फैले हुये हैं, वे तुरन्त तुझको वहीं पकड़ लेंगें भो ज्ञानी! जो कर्मों से दबे होते हैं, उनकी कोई जय नहीं बोलता हैं तीर्थंकर महावीर स्वामी की आज तक क्यों जय बोल रहे हैं? क्योंकि उन्होंने कर्मो को दबा दिया था इसलिए कभी किसी को दबाने, सताने का भाव भी मत लाओ, क्योंकि वह कम से कम मुझे समता का पाठ तो सिखा रहा हैं अरे! जितना सुन रहे हो, शतांश भी तुमने अनुशरण कर लिया तो आप पंचमकाल से क्या, छठवें-काल से भी बच जाओगे; अन्यथा आगे की भूमिका का भी ध्यान रखना सोचो पंचमकाल के बारे में, हम लोग कितने हीन-पुण्यात्मा हैं हमारे सामने विद्याधर नहीं आते, वैमानिक देव नहीं आते, इनका अभाव हो गया हैं पंचमकाल में जीव का इतना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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