SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 233 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "हेय हैं चार महाविकार" मधु मद्यं नवनीतं पिशितं च महाविकृतयस्ता वल्भ्यन्ते न व्रतिना तद्वर्णा जन्तवस्तत्र 71 अन्वयार्थ : मधु मद्यं नवनीतं = शहद, मदिरा, मक्खनं च पिशितं =और माँसं महाविकृतयः = महाविकारों को धारण किये हुएं ताः वतिना = ये चारों पदार्थ व्रती पुरुष के न वल्भ्यन्ते = भक्षण करने योग्य नहीं हैं तत्र तद्वर्णाः = उन वस्तुओं में उसी जाति के जन्तवः =जीव रहते हैं योनिरुदुम्बरयुग्मं प्लक्षन्यग्रोधपिप्पलफलानिं त्रसजीवानां तस्मात्तेषां तद्भक्षणे हिंसां 72 अन्वयार्थ : उदुम्बरयुग्मं = ऊमर, कठूमर अर्थात् अंजीरं प्लक्षन्यग्रोधपिप्यलफलानि = पाकर, बड़ और पीपल के फलं त्रसजीवानां योनिः = त्रसेजीवों की योनि हैं तस्मात् तद् भक्षणे = इस कारण उनके भक्षण में तेषां हिंसा = उन त्रसजीवों की हिंसा होती हैं मनीषियो! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने अनुपम सूत्र दिया कि जिन-जिन निमित्तों से आत्मा कर्म से बंधता है, वे सारे के सारे निमित्त आत्मघात के हेतु होने से हिंसक हैं यहाँ पर आवश्यक नहीं है कि तू निमित्तादि द्रव्य का सेवन करे तभी बंध होगा, क्योंकि सेवन करने से पहले भावों द्वारा द्रव्य के पास पहुँचने से बंध हो जाता हैं सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य नेमिचंद्र स्वामी ने 'गोम्मटसार (जीव कांड) में परिणामों के दस कारणों की चर्चा की है कि जिसने जैसा भाव किया, उसको वैसा बंध हुआ, लेकिन बिना भाव के किसी को बंध होता नहीं मनीषियो! बंध क्षेत्र में नहीं, बंध द्रव्य में नहीं, बंध पदार्थ में नहीं, बंध तेरी परिणति में होता हैं जैसे टेलीविजन का काम अशुभ चित्र दिखाना नहीं, उसका काम तो चित्र दिखाना हैं वैसे ही ज्ञान का काम शुभ या अशुभ नहीं होता, उसका काम तो जानना होता है; परंतु परिणति जैसी होती है वैसा शुभ या अशुभ Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy