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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 23 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 'सम्मत्त सुत्तं' में कहा है "जावदियं वयवादं तावदियं णयवादं" उन वचनों को हम कैसे समझ पायें कि कौन किस दृष्टि से कह रहा है ? बस, अनेकांत लगा लो, सभी विसंवाद समाप्त हो जायेंगें। भो ज्ञानी! आचार्य कुंदकुंद स्वामी कह रहे हैं कि जिसने एक आत्मा को जान लिया, उसने सबको जान लिया हैं उस एक आत्मा तक पहुँचने के लिए बहुत पुरुषार्थ करना होता हैं उस एक को जानने का राजमार्ग एक ही है, परंतु गलियाँ इतनी ज्यादा बनी हुई हैं कि समझना तो एक को ही चाहता है, पर गलियों में प्रवेश करके राजमार्ग को छोड़कर वह राजधानी में प्रवेश करना चाहता हैं इसलिए वे बता रहे हैं कि जितने नय हैं, वे सब गलियाँ हैं उन सब गलियों को पार करते हुए एक राजमार्ग है, वह रत्नत्रय मार्ग हैं उस रत्नत्रय–मार्ग के अभाव में आप चाहो कि मैं अनेक नयों को जानकर भी मोक्ष प्राप्त कर लूँ , तो भी प्राप्त नहीं कर सकतें नयों को इसलिए जानना है कि हमारा कुनय में प्रवेश न हो जायें खोटे नय में प्रवेश से खोटा अभिप्राय आ जाता हैं अतः वह मोक्ष को तो मानता है, आत्मा को तो मानता है, पर कोई जड़प मान रहा है, कोई सत्तारूप मान रहा है, कोई असत्तारूप मान रहा हैं परंतु जिन-शासन सत्प मान रहा हैं वह उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त सत्दृष्टि हैं इसलिए, हे योगी ! जब तू एक को जानने लगेगा, तो तू सर्व का ज्ञाता हो जायेगा और जब तक तू सबको जानेगा, तब तक तू सबका ज्ञाता नहीं होगां जिसने एक विशुद्ध आत्मा को जाना है, उसने ही विश्व को जाना है और विशुद्धात्मा को जानने का उपाय है परमागमं परमागम को जानने का उपाय है न्याय, नय, स्याद्वाद और अनेकांत भो चेतन! जब विचार में वैषम्यता प्रवेश कर जाती है, तो भाव- हिंसा, द्रव्य–हिंसा का जन्म हो जाता हैं वैचारिक एकता बनी रहे, तो न भाव-हिंसा होगी, न द्रव्यहिंसां विचारों की विषमता से ही हिंसा का जन्म हैं ___माँ ने कहा कि पिताजी ऊपर हैं और बेटे ने कहा कि पिताजी नीचे हैं अतः झगड़ा शुरू हो गया, हिंसा शुरू हो गईं भो ज्ञानी ! बेटे ने भी सत्य कहा था, माँ ने भी सत्य कहा था, क्योंकि पिताजी बीच की मंजिल में बैठे हुए थे माँ से जब पूछा तो उन्होंने कहा ऊपर हैं, क्योंकि आपने नीचे से पूछा थां बेटा ऊपर बैठा हुआ था, उसने कहा-पिताजी नीचे हैं वह भी सत्य है, क्योंकि पिताजी बीच की मंजिल में हैं दोनों ने झूठ नहीं बोला, परंतु आपकी समझ नासमझ हो गईं अतः इस ग्रंथ को समझने के साथ-साथ शांत भाव बनाकर चलना, क्योंकि समय (आत्मा) को समझना है और समय नहीं दिया तो काम नहीं बनेगां यदि बड़े भाई ने माँ से पूछा कि पिताजी कहाँ हैं ? माँ ने कह दिया ऊपर, छोटे भाई ने कह दिया नीचें यह सुनकर यदि तुम थोड़ा समय दे देते तो आप माँ और छोटे भाई पर न झुंझलातें अनेकांत यह भी कह रहा है कि मुझे समझना, परंतु समय देकर समझनां समय नहीं दोगे तो मुझे नहीं समझ सकोगें पुनः समझना कि जब घर में बहुत सदस्य हैं और उन सबके अपने-अपने भाव हैं, तो सबकी बात आपको सुनना हैं कोई कुछ कह रहा है, तो कोई कुछ कह रहा हैं यदि आप समय को समझते हो तो कहना ठीक है, इनका यह सोच है, आपका क्या Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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