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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 214 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 तक बच्चे को अष्टमूलगुण का पालन कराने का अधिकार माता-पिता का रहता हैं नहीं कराया, तो हिंसा का दोष माता-पिता को ही लगेगां यदि वह साधु बन गया, तुम्हारी बात उसको पता चल गई, तो वह कहेगा माँ ! धिक्कार है जो मैंने तेरी कोख से जनम लिया तूने मेरे संयम का जन्म ही से नाश करवा दियां इसलिये, हे माताओ! बच्चों को मदिरा का पान मत कराओ, अफीम मत खिलाओं भो ज्ञानी! आयुर्वेद कहता है - बच्चा जितना ज्यादा रो लेता है, उतना तंदुरुस्त होता हैं कब रोयेगा वह ? उसको रोने का मौका तो दों माँ आँचल का पान कराती है, तो उसके अंदर वात्सल्य भाव रहता हैं पर जब जन्म से ही उसे कठोर बोतल पकड़ा देती है, तो उसके अंदर कठोरता संस्कारित हो जाती हैं अहो! आचार्य कुंदकुंददेव की माँ ने - 'शुद्ध हो, बुद्ध हो, निरंजन हो, ऐसी लोरियाँ कहकर अपने लाल में संस्कार डाले, परंतु तुम्हारा बच्चा रोया, तो तुमने टेलीविजन खोल दियां बताओ कैसे तुम्हारे घर में राम जन्में श्याम जन्में महावीर जन्में कौन जन्में ? वे कंस के संस्कार हैं, तो कंस ही उत्पन्न होंगें बड़ा खाते हो और 'मठे' की कड़ी बनाकर खाते हों जैसे ही बेसन, छाछ आदि का संयोग लार से होता है, उसमें जीव पड़ गए और तुम्हारे मुँह में चले गयें - आमं वि दहियम विदलनु होई' तम् असणे पापं भणंत जोई अमरसेन चरिऊ इसी प्रकार कच्चे दूध से बने दही, छाछ आदि खाने को योगियों ने पाप कहा हैं टॉनिक में मधु पड़ा हैं एक बूँद शहद के भक्षण से सात गाँव जलाने के बराबर हिंसा होती हैं अहो! शक्कर की चासनी बना लेना, पर शहद में औषधी मत खानां ध्यान रखना, मद्य, माँस, मधु और पंच - उदम्बर- फल का त्याग, ऐसे हिंसा की इन आठ वस्तुओं का पहले ही त्याग कर देनां यह मदिरा मन को मोहित कर देती हैं मद्यपायी धर्म को भूल जाता हैं अतः जिनका शरीर खोखला, मन खोखला और जो आचरण से भी खोखले हैं, ऐसे लोगों की संगति मत करनां मंगल वाय Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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