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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 212 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 लोग सामायिक में पाँच मिनिट सबके बारे में चिंतवन किया करों कभी-कभी विष्टा का कीड़ा बनकर भी चिंतन करो कि एक तो मल में कीट हुआ और किसी सुअर ने उठा लिया, उस समय उस अवस्था का, उस पर्याय का चिंतयन करनां अहो ज्ञानी ! ऐसी-ऐसी वेदनाएँ तुमने प्राप्त की हैं जिस दिन दूसरे की वेदना का वेदन हो जाएगा, उस दिन आपका विवके जाग्रत हो जाएगां लोटे भर पानी की जगह बाल्टी भर पानी का उपयोग नहीं करोगें यदि देश का प्रत्येक नागरिक वर्द्धमान के अनुसार अहिंसा का पालन करने लगे, तो नगर की दीवारों पर यह नहीं लिखना पड़ेगा कि बूँद बूँद जल की रक्षा करों भो ज्ञानी आत्माओ! पानी का उपयोग ऐसे करो जैसे कि तुम घी और तेल का करते हों खोल दी नल की टोंटी और नीचे बैठ गएं चिंता मत करो, सारी तपन तुम्हारी नरकों में ठंडी हो जायेगीं ज्यादा गर्मी लगती है तो कूलर / पंखे का प्रयोग करते हो, यहाँ तक कि मंदिर में भी यह लगने लगे अरे! कम से कम इतना तो संयम बरत लो कि मंदिर में पंखा नहीं चलायेंगे आप तो पूजा करके सोच रहे थे कि पुण्य - आस्रव हो रहा है, परन्तु वहाँ पंखे में एक पंचेन्द्रिय आकर खत्म हो गया, अतः आपको नरकगति का आस्रव हो गयां पूजा के काल में भी तुम्हारा स्पर्शन इंद्रिय का भोग चल रहा थां इसलिय भैया! सँभलकर चलना, फिसलन बहुत हैं एक बार हम लोग सम्मेदशिखर की वंदना करने गयें उस तीर्थ में बहुत आनंद है, लेकिन एक अनोखी घटना देखी तो आँखों में आँसू भर आये कि यात्रियों के लिए गर्म पानी की व्यवस्था हेतु वहाँ बड़े-बड़े हन्डे रखे हुए हैं, नीचे अग्नि जल रही है और नल की टोंटी में छन्ने लगे हुये हैं अब बताओ उन जीवों का क्या हो रहा होगा? वह तो आपस में ही नष्ट हो गयें आपने गीजर लिया और चालू कर दियां ठीक है, पहले ज्ञान नहीं था, पर अब तो जीव को जीव मान कर कम-से-कम इतने क्रूर तो मत बनों दया से दया बढ़ती है ध्यान रखना, जैसे धन से धन बढ़ता है, वैसे ही करुणा से करुणा बढ़ती हैं दया चली गई, तो जीवन में बचा क्या? अहो ज्ञानियो! जिसके चेतन - घर में अहिंसा का दीप बुझ गया, तो समझो सब दीप बुझ गये - ज्ञान का दीप, चारित्र का दीप, श्रद्धा का दीपं कुंदकुंददेव का सूत्र है "धम्मो दया विशुद्धो' (बो.पा. 25) धर्म वही है, जो दया से विशुद्ध होता हैं दया पाप नहीं, दया धर्म ही हैं निश्चय से निज पर दया, व्यवहार से प्राणीमात्र पर दयां अतः दया को पाप मत कह देनां गौतम स्वामी ने सूत्र दिया है - "धर्मस्य मूलं दया", धर्म का मूल दया हैं धम्मो मंगल मुक्किट्ठे अहिंसा संयमो तवो देवा वि तं णमंसंति जस्स धम्मे सयामणो 8 वी भ - Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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