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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 204 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 है, फिर भी वैद्य हिंसक नहीं है, अहिंसक ही हैं दृष्टि का ध्यान रखना, यह रक्षा की दृष्टि हैं इस प्रकार यह वीतरागमार्ग हैं परंतु जो दृष्टिमूढ़ हैं, अज्ञानी हैं, उनके लिए "गुरुवो भवन्ति शरणं" यदि कोई शरण है तो, भो ज्ञानी! वीतरागी गुरु की ही शरण हैं जो निष्पह, निर्द्वन्द्व और निरपेक्ष है, वह निज की सेवा से भी दूर हैं अहो! निज की सेवा के भाव आएँगे तो कभी सत्य का उपदेश नहीं हो पाएगां सत्य को सत्य ही कहना और सत्य को सत्य ही समझना; नहीं तो, भो ज्ञानी ! "लोभी गुरु और लालची चेला, होय नरक में ठेलम ठेला" ऐसे चेला नहीं बनना और ऐसे गुरु नहीं बनानां यहाँ तो निष्पह गुरु और निर्द्वन्द्व चेले की चर्चा हैं ___ भो मनीषियो! यदि गुरु मिल गये होते तो हमारी समाज के दो टुकड़े नहीं होतें गुरु के अभाव में तुमने जो ज्ञान हासिल किया, उससे नय के चक्र को समझ नहीं पायें इसी कारण पंथों के चक्र चल गये और यदि नय चक्र समझ लिया होता तो पंथ के चक्कर स्वयमेव समाप्त हो जातें इसीलिए आचार्य देवसेन स्वामी ने कहा है कि भगवान् जिनेन्द्र के नय-चक्र को समझें, विवक्षा को समझें तथा गुरु की शरण को प्राप्त करें; क्योंकि बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता हैं जब तक वीतरागी गुरु की शरण नहीं मिलती, तब तक वीतरागी जिनेन्द्र की निर्मल देशना समझ में नहीं आती यह सत्य है, यथार्थ हैं क्योंकि जिसके पास जो होता है, वही देता हैं यह किसी की भूल मत कहो, यह अपनी ही भूल कहो कि 'गुरु के अभाव में ज्ञान होता हैं अतः हम सभी उस नयचक्र को समझें "अध्यात्म अमृत कलश" में आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने लिखा है-हे प्रभु! स्याद्वाद से लक्षित आपकी जो वाणी है, वह नय के विरोध को विध्वंस करनेवाली हैं इसलिए उस वीतरागवाणी की एवं पंच-परम-गुरु की शरण को प्राप्त करें भगवान आदिनाथ के चरण :श्री बद्रीनाथ जैन तीर्थ, चमौली, उत्तराखंड Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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