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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 171 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 है, निग्रंथ बन जाता है, दिगम्बर बन जाता है, फिर वह हंस-आत्मा परमहंस की ओर बढ़ती हैं सौभाग्य, अहोभाग्य भी छूट जाता है और वहाँ परम शब्द भी छूट जाता हैं परमेश्वर जब समवसरण में पहुँच जाते हैं, फिर वह ‘परम' शब्द भी छूट जाता है, उपाधियाँ नष्ट हो जाती हैं और अनुपम होकर उपमातीत हो जाते हैं भो ज्ञानी! प्रमाद को छोडकर, अब जाग जाओं आचार्य उमास्वामी महाराज ने हिंसा का स्वरूप बताते हुए कहा है-"प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा" प्रमाद के योग से जीवों का विधात करना हिंसा हैं प्रमाद यानी 'कुशलेषु अनादरा प्रमादाः, कुशल-क्रियाओं में अनादर-भाव होने का नाम प्रमाद हैं भो ज्ञानियो! जिसने कर्म के कुशों को अपने भेदविज्ञान के नखों से विवेक के साथ निकालकर फेंक दिया है, वही कुशल परमेश्वर, परम परमात्मा, परमहंस-आत्मा है और जब तक तुम कर्मों को नहीं निकाल पा रहे, तब तक तुम कितने ही कुशल बन जाओ, लेकिन अपने ही हाथ फाड़ रहे हों आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं-"प्रमाद को छोड़ दों प्रमाद रहेगा तो हिंसा समाप्त होने वाली नहीं हैं। भो ज्ञानी! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी के श्रावकाचार की शैली तो देखो और जब आप कहीं "मूलाचार" को सुनोगे तो फिर आप कहोगे कि भगवान की सत्ता कैसी निर्मल होगी? जब एक श्रावक की चर्या ऐसी है, फिर यति की चर्या कैसी होगी ? परमेश्वर का परिणमन कैसा होगा? इसलिए आचार्य योगीन्दुदेव स्वामी ने लिखा है "यदि किसी को साधु-स्वभाव पर शंका हो तो एक घंटे सामायिक कर लो और यदि किसी को सिद्ध-स्वभाव पर शंका हो तो एक घंटे साधु बनकर बैठ जाओ और फिर देखो, कोई चिंता नहीं, प्रसन्न/प्रमुदित हैं" जब कभी यह शंका हो कि भगवान् कैसे होंगे ? तो साधु बनकर फिर सामायिक करना "यों चिन्त्य निज में थिर भये, तिन अकथ जो आनन्द लहो" भो ज्ञानी! श्रद्धापूर्वक और विवेकपूर्वक क्रिया करो, भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक रखों कुछ भी आया खा लो, यही तो मूल में भूल हैं मनीषियो! जीवन में भक्ष्य-अभक्ष्य की गोष्ठी मंदिर में करो या न करो, लेकिन घर में बैठक जरूर कर लेनां यदि माता-पिता ने भक्ष्य-अभक्ष्य की गोष्ठी कर ली, तो पता नहीं कितने श्रावकों, मुनियों को जन्म दे देंगें ध्यान रखना, आजकल बहुत गोष्ठियाँ हो रही हैं 'गोष्ठी' शब्द मनुष्यों से उत्पन्न नहीं हुआं जब गायें चरकर आती हैं और एक स्थान पर बैठ जाती हैं, फिर वो जुगाली करती हैं, रुंथन करती हैं अर्थात् वहाँ बैठकर गोष्ठी होती हैं भो ज्ञानियो! ऐसे ही तत्त्व को वह एकसाथ बैठकर घर में जुगाली किया करो कि आज जिनवाणी में क्या कहा है, यही तो गोष्ठी हैं अहो! रुंथन नहीं करोगे, तो पाचन नहीं होगा, अजीर्ण हो जायेगा और अजीर्ण का परिणाम तो आप सब भोग ही रहे हों एक गुट इधर जा रहा है, एक उधर जा रहा हैं रुथन कर लिया होता, जुगाली कर ली होती अर्थात् तत्त्व को पढ़ने के बाद चिंतवन द्वारा व्यवस्थित ज्ञान अपने में प्रवेश करा देता तो शंका/भ्रम में नहीं पड़ता, एकांत में नहीं जाता; क्योंकि उसके लिए ज्ञान का अजीर्ण नहीं हैं मनीषियो! आचार्य भगवान् कह रहे हैं- राग-द्वेष के बिना युक्तिपूर्वक जो Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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