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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 159 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 'मुनि भेष ही समयसार है' निरतः कार्त्स्यनिवृत्तौ भवति यतिः समयसारभूतोऽयम्ं या त्वेकदेशविरतिर्निरतस्तस्यामुपासको भवति 41 अन्वयार्थ : = लवलीन यह मुनिं समयसारभूतः = शुद्धोपयोग कार्त्स्यनिवृतौ = सर्वथा सर्वदेश त्याग में निरतः अयम् यतिः रूप स्वरूप में आचरण करनेवालां भवति होता हैं या तु एकदेशविरतिः = और जो एकदेश विरति हैं। तस्याम् निरतः = उसमें लगा हुआ उपासकः भवति = उपासक अर्थात् श्रावक होता हैं = आत्मपरिणामहिंसनहेतुत्वात्सर्वमेव हिंसैतत् अनृतवचनादिकेवलमुदाहृतं शिष्यबोधाय 42 अन्वयार्थ : आत्मपरिणामहिंसनहेतुत्वात् = आत्मा के शुद्धोपयोगरूप परिणामों के घात होने के हेतु से एतत्सर्वम् हिंसा एव = ये सब हिंसा ही हैं अनृतवचनादि = असत्य वचनादिक के भेदं केवलम् शिष्यबोधाय = केवल शिष्यों को समझाने के लिए उदाहृतं = उदाहरणरूप कहे हैं भो मनीषियो! संसार असार हैं पर्यायदृष्टि से जितने द्रव्य हैं, सब विनाशीक हैं नंदीश्वरदीप, सुमेरुपर्वत ये सब अकृत्रिम पदार्थ हैं, लेकिन अर्थपर्याय की दृष्टि से इनमें भी परिणमन होता है, तत्स्वरुप परिणमन चलता हैं कोई भी द्रव्य कूटस्थ नहीं हैं अतः विश्व के सम्पूर्ण द्रव्य परिवर्तनशील हैं और परिवर्तन के परिणमन में जो परिणामी को भूल जाता है, वही अज्ञानी होता हैं परिवर्तन में परिणामी को जो परिणामीरूप निहारता है, उसे द्रव्य-सत्ता दृष्टिगत होती हैं संयम और चारित्र को पर्याय सुधारने के लिए नहीं हैं पर्याय को सुधारकर हम करेंगे क्या ? पर्याय तो पर-द्रव्य हैं अशुद्ध - व्यंजन- पर्याय की दृष्टि से पर्याय आपकी है; लेकिन जो आप जीवत्व की बात करेंगे तो उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण का लेशमात्र भी नहीं हैं जीव का स्वरूप उपयोगमयी है, शरीर का स्वरूप स्पर्श-रस-गंध-वर्णमयी हैं दोनों में संश्लेष- सम्बन्ध हैं अहो! संक्लेषता का नाश करना Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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