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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी : पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 152 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 तब तक मधुर दुग्ध भी कड़वा लगता है जिसके मिथ्यात्व की कड़वाहट बैठी हो, उसे कहाँ ज्ञान चारित्र दिखता है? वह तो उपहास करता है, ज्ञानियों की हंसी उड़ाता है; क्योंकि उसे मालूम तो यही है कि मेरे मुख में जैसा स्वाद है वैसा ही सबके मुख में होगां अरे ! बाहर के मुख को तो इलायची से साफ कर भी लो, परंतु मिथ्यात्व के मुख में इलायची भी कुछ नहीं कर पायेगीं मिथ्यात्व की कड़वाहट को दूर करने के लिए तो सद्गुरु की वाणी ही चाहिये इसलिये ध्यान रखना सद्गुरु देया जगाय, मोह-नींद जब उपशमें तब कुछ बने उपाय कर्म-चोर आवत रुकें बा. भा. जो स्वयं जागा है, वही दूसरों को जगा सकता है, जो स्वयं जला है, वही दूसरों को जला सकता हैं बुझे दीपों से कभी दीप नहीं जलते, जले दीपों से ही दीप जलते हैं जो स्वयं संयम से बुझा-बुझा बैठा है, वह तो यही कहेगा कि ज्ञान करो, श्रद्धा करो; पर हमें यह समझ में नहीं आता कि किसका ज्ञान करें, श्रद्धा किस पर करें? क्योंकि श्रद्धेय दिखते ही नहीं है मनीषियो, पंचपरमेष्ठी हमारे श्रद्धेय हैं और एक निज-आत्मा ही हमारा परमश्रद्धेय हैं उसी का ज्ञान करना है, उसी का श्रद्धान करना हैं भो ज्ञानी! ज्ञेय जब सामने होता है, तभी ज्ञान से ज्ञेय को जाना जाता हैं अतः, श्रद्धेय के अभाव में श्रद्धा किसकी की जाये? पहले श्रद्धेय को प्रकट करो, फिर श्रद्धा को प्रकट करों हमारे श्रद्धेय सर्वज्ञदेव हैं, निर्ग्रन्थ गुरु हैं, वीतरागवाणी हैं श्रद्धा मेरी आत्मा का धर्म हैं लेकिन जब तक दर्शनमोह का विगलन नहीं होगा, तब तक श्रद्धा नहीं, श्रद्धेय नहीं और ज्ञान भी नहीं, ज्ञेय भी नहीं, ये सब अज्ञान हैं इसलिये सबसे पहली आवश्यकता मिथ्यात्व के जहर को निकालने की हैं परन्तु केंचुली से काम नहीं चलेगा, थैली निकालने की आवश्यकता हैं भो चैतन्य! इन नागों ने कँचुली तो अनेक बार निकाली है पर हे विषधर ! तुम केंचुली के निकालने से निर्विष नहीं होतें इसी प्रकार वस्त्रों को उतारने से, भोगों को फेंकने से आत्मा निग्रंथ दशा को प्राप्त नहीं होतीं जब तक वासना और मिथ्यात्वरूपी, जहर की थैली नहीं निकलेगी, तब तक मुमुक्षु हो ही नहीं सकतां केंचुली के छूट जाने का नाम निर्विषपना नहीं थैली छूटेगी तभी निर्विषपना होगां भो ज्ञानी! ज्ञान करके, श्रद्धान करके केंचुली भी छूट गई, परंतु जब तक चारित्र - मोहनीय की गाँठ नहीं खुलेगी, तब तक भगवती-आत्मा प्रकट होने वाली नहीं है मनीषियो! उपादान तभी जागेगा, जब सम्यक् पुरुषार्थ होगा इसलिये जब दर्शन - मोहनीय कर्म का विगलन होता है, तो सम्यकरूप से तत्त्वों का श्रद्धान करता है, ज्ञान करता है. नित्य ही निष्कंप होकर सम्यकचारित्र का आलम्बन करता हैं Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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