SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 142 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002 = "अष्टाङ्ग सम्यक्ज्ञान" कर्त्तव्योऽध्यवसायः सदनेकान्तात्मकेषु तत्त्वेषु संशयविपयर्ययानध्यवसायविविक्तमात्मरूपं तं 35 अन्वयार्थः = तत्वों या पदार्थों में अध्यवसायः = उद्यम करनां कर्तव्यः सदनेकान्तात्मकेषु = प्रशस्त अनेकान्तात्मक अर्थात् अनेक स्वभाववालें तत्त्वेषु कर्तव्य है, औरं तत् = वह सम्यग्ज्ञान संशयविपर्ययानध्यवसायविविक्तम् संशय, विपर्यय और विमोह रहितं आत्मरूपं = आत्मा का निजस्वरूप हैं = ग्रन्थार्थोभयपूर्ण काले विनयेन सोपधानं चं बहुमानेन समन्वितमनिह्नवं ज्ञानमाराध्यम्ं 36 अन्वयार्थः ग्रन्थार्थोभयपूर्ण ग्रन्थरूप (शब्दरूप) अर्थरूप और उभय अर्थात् शब्द - अर्थरूप शुद्धता से परिपूर्ण काले = काल में अर्थात् अध्ययनकाल में आराधने योग्यं विनयेन = मन-वचन-काय की शुद्धतास्वरूप विनयं च = औरं सोपधानं = धारणायुक्तं बहुमानेन समन्वितम् अतिशय सम्मान कर अर्थात् देव, गुरु, शास्त्र की वन्दना/नमस्कारादि सहित तथां अनिह्नवं = विद्यागुरु की गोपना से रहितं ज्ञानम् आराध्यम् = ज्ञान आराधना करने योग्य हैं = भो ज्ञानियो ! अंतिम तीर्थेश भगवान् वर्द्धमान स्वामी की पावन देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने अनुपम सूत्र दिया कि ज्ञानीजीव आत्मा की आत्मज्ञानशक्ति का निर्मल उपयोग करता है और अज्ञानीजीव इस ज्ञानशक्ति का दुरुपयोग करता हैं अतः सम्यकदृष्टि ज्ञानी है और मिथ्यादृष्टि अज्ञानी हैं संयमी ज्ञानी है, असंयमी अज्ञानी हैं अहो! जब कोई परिणाम विनय से भरे होते हैं, श्रद्धा से भरे होते हैं, तो अज्ञानी भी ज्ञानी कहलाने लगता है; क्योंकि जो ज्ञान है, वही प्रमाण नहीं है; बल्कि जो सम्यक्त्व - सहित ज्ञान है, वही प्रमाण हैं यदि हम ज्ञान को ही प्रमाण कहें तो लोक में जितने ज्ञान हैं, वह सभी प्रमाण हो जाएँगं अतः हमारे आगम में सम्यक्- अपेक्षा ही अनेकांत है, सम्यक् - अपेक्षा ही सम्यक्ज्ञान है, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact: akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy