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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 138 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 आएंगें उस पंक को धोने का पानी तेरे पास ही हैं अहो! कीचड़ को भी तो पानी ही चाहियें आपने पाप किया है तो ज्ञान से किया है, बुद्धि-पूर्वक किया है, चित्त से किया हैं अपनी पाप-परिणति को परमात्मा पर थोपना तो पाप है, मायाचारी भी हैं क्योंकि जब काम बिगड़ने लगता है तो ईश्वर को बुला लेते हो और जब काम बनने लगता है तो सीना फुला कर कहते हो कि हमने ऐसा कियां भो ज्ञानी! मनुष्य से बड़ा कोई स्वार्थी जीव नहीं हैं सभी जीवों से अपना काम निकाल लेता हैं जब अपना नम्बर आता है तो कहता है कि मैं तो भगवान्-आत्मा हूँ , मैं तो अकर्ता हूँ शिष्य ने प्रश्न किया कि, भगवन् शुद्धात्मा की प्राप्ति कैसे हो? तब आचार्य कुंदकुंद महाराज ने कहा कि - कह सो घिप्पदि अप्पा, पण्णाए सो दु धिप्पदे अप्पां जह पण्णाए विभत्तो, तह पण्णाएव घित्तव्यों 318 समयसारं अहो! प्रज्ञा कितनी विशाल है कि आपने जिस प्रज्ञा से पाप किये हैं, उसी प्रज्ञा से पाप समाधान भी होगां हाथी को निकालने के लिये हाथी ही चाहिये , उसी तरह पाप से निकलने के लिये पुण्य ही चाहियें पुण्य के लिये परिणामों की निर्मलता चाहियें मनीषियो! ज्ञान तो ज्ञान हैं ज्ञान सम्यक नहीं होता है, दृष्टि सम्यक् है, तो ज्ञान भी सम्यक है और यदि दृष्टि मिथ्या है तो ज्ञान भी मिथ्या हैं वही ज्ञानमोक्ष मार्गी है, वही ज्ञान नरकमार्गी है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ज्ञान का उपयोग करने की तेरी शैली कैसी है ? एक जीव ज्ञान के द्वारा पांडवों को अग्नि में जला रहा हैं भो ज्ञानियो! कौरवों के पास क्षयोपशम नहीं होता तो लाक्षागृह कैसे बना देते ? ज्ञान तो था, पर उसे दूसरे को जलाने में प्रयोग कियां ज्ञान तो दीपक के तुल्य होता हैं अपने ज्ञान को प्रकाश का दीप बना लो, परंतु नाश का दीप नहीं बनानां जब मोक्षमार्ग में मिथ्यात्व का अंधकार छाया हो, तो ज्ञान का दीप जला देनां । भो ज्ञानी! जिसके जीवन में पंच-परम-गुरु के प्रति श्रद्धा हो, उनकी श्रद्धा को जलाने के लिये तुमने ज्ञान का असम्यक् उपयोग यदि कर दिया, तो अग्नि से जो होता, वह पानी से भी नहीं होता हैं पानी में यदि कोई व्यक्ति गिर भी जाए तो हड्डी-पसली तो मिल जायेगी, लेकिन अग्नि में पड़े व्यक्ति की केवल राख ही मिलेगी इसलिये, ज्ञानी तो बनना, पर विवेक के साथ ज्ञान का उपयोग करनां अतः, आचार्य महाराज ने पहले सम्यक्त्व का कथन किया है कि यदि तेरा दर्शन निर्मल है तो ज्ञान का तू सही उपयोग कर सकेगां दर्शन निर्मल नहीं है तो ज्ञान तेरे संसार ही का कारण बना रहेगां Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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