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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 127 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 दिख गया, तो आप स्थितिकरण करनां पहुँच जाना एकांत में और सिर टेक कर तीव्र भक्ति प्रकट करना और कहना, हे भगवान! आप धन्य हों ऐसे कलिकाल में लोग विषयों में लिप्त हैं, लोग राग में लिप्त हैं, लोग परिग्रह में लिप्त हैं, परंतु धन्य हो आपकी इस अवस्था को, कि आपने ऐसे काल में वीतराग श्रमण के स्वरूप को स्वीकार किया हैं हम तो आपके चरणों की धूल भी नहीं हैं तुम्हारी मधुर प्रार्थना से उस शिथिलाचारी के अंदर से शिथिलाचार का जहर जरूर निकल जाएगां यही स्थितिकरण हैं स्थितिकरण किया था वारिसेण महाराज ने मुनि पुष्पडाल का, जो बारह साल तक कानी पत्नी की याद नहीं भूले थें देखो क्या होता है ? वारिसेण महाराज के समक्ष बत्तीस दिव्य सुंदरियाँ आकर खड़ी हो गईं, नमोस्तु निवेदन करने लगीं इधर मुनिराज पुष्पडाल देख रहे थे पर वारिसेण महाराज ने अपनी माता से पुष्पडाल की कानी पत्नी को भी बुलाने हेतु कहां महाराज वारिसेण बोले- हे पुष्पडाल! यह बत्तीस रानियाँ खड़ी हुई हैं और एक तैंतीसवीं आपकी स्त्री खड़ी हुई हैं इनमें स्वीकारो, जो तुमको सुंदर लगें अहो! धिक्कार हो मुझे, कि बारह वर्ष तक कानी का स्मरण कियां चलो स्वामिन! धिक्कार हो मेरी अशुद्ध वृत्ति को, यह तो वमन करके चाटने की वृत्ति हैं भो चेतन! हो गया खेलं जो बारह वर्ष तक द्रव्यलिंग में जिया, एक मुहूर्त में भावलिंग का उदय हो गयां यह स्थितिकरण हैं मनीषियो! जैसे गाय अपने बछडे को दलार करती है, चाटती है, ऐसे तुम भी प्रेम/वात्सल्य भाव बनाकर रखना जीवन मिला है, अच्छे से जियो, हिलमिल कर जियों बुद्धि तुच्छ है, उसे पंथों में मत बाँटो, कंथों में मत बांटो, ग्रंथों में मत बांटों कल्याण चाहते हो तो निग्रंथ भगवंतों की आराधना करों भो ज्ञानी! ये जोड़ने का शासन है, तोड़ने का नहीं मत कहो कि मैं बड़ा, यह छोटां पता नहीं कौन सी पर्याय में खड़े मिलोगे, फिर नहीं पूछोगे कौन बड़ा और कौन छोटा ? श्वान भी देव हो जाता है, देव भी श्वान हो जाता हैं इसलिए अहंकार मत करों वीतरागी शासन ही सत्य हैं स्वास्तिक Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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