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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 120 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 तुमने सत्य को समझा ही नहीं भो ज्ञानी! षट्खण्डागम, समयसार जैसे ग्रंथों का स्वाध्याय कर लिया, परंतु श्रावकाचार के आष्ट-मूल-गुण को नहीं समझ सकें माँ जिनवाणी कहती है कि जिसके पास सम्यकदर्शन है, वही ज्ञानी-जीव है, शेष सभी अज्ञानी हैं मनीषियो! आज कोई प्रश्न करने लगे कि देखो इतने सारे लोग प्रवचन-सभा में जमीन पर बैठे हैं, दो-चार अहंकारी कुर्सियों पर बैठे हैं और तुमने जाकर के पर्चा छपा दियां अरे! ज्ञानी! यह लिखने से पहले पूछ तो लेता कि वे क्यों बैठे थे कुर्सी पर ? इतनी तुम्हें फुर्सत नहीं मिली, तुमने तो लिखवा के छपवा दियां अहो! तुमने उस जीव की हँसी नहीं की है, तुमने तो वीतराग-धर्म की हँसी की हैं अरे भैया! उम्र ही ऐसी है, स्वास्थ्य खराब है, बैठ नहीं सकते हैं, तो क्या धर्म ही नहीं सुन सकते ? हमारी जिनवाणी में स्पष्ट लिखा है, तुम लेटकर भी सामायिक कर सकते हो, लेकिन सामायिक करना, सामायिक नहीं छोड़ देनां कोई अस्वस्थ हो गया हो और सामायिक का समय है और वह आराम कर रहा हैं आपने कहा कि हमारे यहाँ तो बैठकर सामायिक की जाती हैं मालूम चला कि आपने बैठने के चक्कर में मूलगुण ही छुड़ा दियां इसलिए, जितनी सामर्थ्य है, उतना श्रद्धान करो, किसी के कहने से पहले समझने की चेष्टा करों भो चेतन! विद्वान् कभी-कभी बड़ी विद्वत्ता का काम कर लेते हैं एक ज्ञानी बाहर से व्यापार करके आया, उसके पास रत्न /जवाहरात थें कोई गाड़ी थी नहीं, वह बड़ा परेशान था कि यदि मैं यहाँ ठहरता हूँ, तो पता नहीं क्या हो जाएं अतः उसने प्लेटफार्म का टिकिट नहीं लिया और पुलिस आयी- बाबूजी! क्यों घूम रहे हो, टिकट कहाँ है ? बोले- है नहीं तो थाने ले गयें अब रात्रि में हमारी सुरक्षा तो हो जायेगीं तो जो ज्ञानीजीव होता है, वह प्रज्ञा का उपयोग कहाँ और कैसे करना चाहिए, वहाँ करता हैं भो ज्ञानी! समन्तभद्र स्वामी ने उपगूहन की चर्चा में बड़ा गहन सूत्र दिया है कि बाल और अशक्त लोगों से कहीं भी धर्म की हँसी हो रही हो तो उसे ढंक देना, जिससे नमोस्तु-शासन की छवि धूमिल न हो और फिर आप स्थितिकरण की बात करना इसमें भी ध्यान रखना, उपगूहन तो करेंगे, पर अहंकार को छोड़करं ऐसा नहीं कि बातें तो प्रकट कर दी और कह रहे हैं कि हमने तो ढ़की थी, हमने बचा लिया था तुम्हें इसीलिए कभी भी यह मत कहना कि हमने ऐसा कियां ठीक है, किया है, जैसे भूमि में बीज डाल दिया; अब चुप रहों जब फसल आयेगी तो नियम से फल मिलेगा, अभी हल्ला करने से कोई फायदा नहीं; क्योंकि उपगूहन सम्यक्त्व का अंग हैं भो चेतन! उपगूहन पर-का नहीं निज-का ही धर्म हैं आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि अपने चैतन्य गुणों को विभाव-भावों से गुप्त रखो, यही तेरा उपगहन अंग हैं अपने स्वभाव को विभावों से सुरक्षित रखो, यही तेरा वास्तविक उपगहन अंग हैं ध्यान रखना, स्थितिकरण पहले स्वयं का कर लेना, फिर दूसरे का करनां स्वयं तो गिर रहे हो और दूसरे को उठा रहे हो, पता चला कि दोनों ही डूब गयें Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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