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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 117 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 "हो जा स्व में स्थित" कामक्रोधमदादिषु चलयितुमुदितेषु वर्त्मनो न्यायात् श्रुतमात्मनः परस्य च युक्त्या स्थितिकरणमपि कार्य[28 अन्वयार्थः कामक्रोधमदादिषु = काम, क्रोध, मद, लोभादि विकारं न्यायात् वर्त्मनः = न्यायमार्ग से अर्थात् धर्ममार्ग सें चलयितुम = विचलित करने के लिये उदितेषु = प्रगट हुए हों तब श्रुतम् = श्रुतानुसारं आत्मनः परस्य च = अपनी और दूसरों की स्थितिकरणमं अपि = स्थिरता भी कार्यम = करनी चाहिये भो मनीषियो! तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवन् अमृतचंद्र स्वामी ने बहुत ही सुंदर सूत्र दिया है कि "आत्म-गुणों का गोपन तथा पर के दोषों का गोपन अथवा आत्म-दोषों का प्रगटीकरण और पर के दोषों के गोपन का नाम ही उपगृहन हैं" जिस जीव ने धर्म को समझा है, वह व्यक्ति के पीछे धर्म का बलिदान नहीं करतां व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी और उसके दोष उसके साथ ही चले जायेंगे, लेकिन व्यक्ति का नाम धर्म नहीं हैं जिसने व्यक्ति को धर्म मान लिया है, वह अभी धर्म से बहुत दूर हैं फिर तो जब तक व्यक्ति रहेगा तब तक धर्म रहेगा और जिस दिन व्यक्ति चला जायेगा, तो धर्म भी चला जायेगां इसलिये, तीर्थंकर की देशना में जो खिरा है, वही धर्म का स्वरूप हैं परमेष्ठी जो कह रहे हैं, वही धर्म का स्वरूप हैं परमेष्ठी जो पालन कर रहे हैं, वह धर्म हैं परमेष्ठी का नाम धर्म नहीं भो चेतन! तीर्थकर मुनिराज दीक्षा के बाद मौन क्यों हो जाते हैं ? सबको गर्भ/जन्म से ही मालूम होता है कि बालक तीर्थकर हैं सबकी श्रद्धा जुड़ी होती है कि यह जो भी कुछ कहेंगे सत्य कहेंगें लेकिन जब तक कैवल्य प्रगट नहीं होता, तब तक पूर्ण सत्य का ज्ञान होता कहाँ है? वे मुनिराज इसलिये मौन हो जाते हैं कि छद्मस्थ-अवस्था में मैंने कुछ कह दिया तो लोग प्रमाणित मान लेंगे और अभी मुझे पूर्ण कैवल्य का ज्ञान प्रगट हुआ नहीं है; मेरे पहले कोई केवली की वाणी है नहीं तीर्थंकर भगवान् गृहस्थ-अवस्था में गृहस्थी की बातें तो करते हैं, लेकिन धर्म की बातें नहीं करतें जब प्रद्युम्नकुमार का मरण हुआ, तब नेमिनाथ स्वामी से पूछा था वे तीन ज्ञान के धारी थे, बता भी सकते थे, लेकिन नहीं बतायां क्यों ? लोगों की भीड़ लगने लग जायेगी, लोग पूछना शुरू कर देंगें Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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