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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 106 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 चलता हैं आयुकर्म को अवधारण करने के लिए बाह्य द्रव्य भी आवश्यक होते हैं, लेकिन वह अनिवार्य नहीं होतें वह आवश्यक इतने हैं कि तुम दिन में अपनी पूर्ति कर लो, पर रात्रि में आप बिना पानी पिये जी सकते हों यहाँ कह रहे हैं कि वीतरागधर्म के परिणाम और चर्या को देखकर क्षुधा, प्यास, शीतोष्णता सहन करना पड़े, फिर भी धर्म से ग्लानि मत कर देना परिणामों में मल आदि के प्रति भी नाक मत सिकोड़नां दुर्गन्ध न फैले तो मल किस बात का? वह कम से कम अपने धर्म का तो पालन कर रहा है, पर आप अपने धर्म से भाग रहे हैं माँ जिनवाणी कह रही है कि मल के टुकड़े से तुम द्वेष मत करो, ग्लानि मत करों हे मनीषियो! तुम इन भगवान-आत्मा पर कैसे द्वेष कर लेते हो? वह भी भगवान बनने वाला हैं ध्यान रखना, सम्बन्ध कितने ही विलग हो जायें, पर रिश्ते टूटने वाले नहीं हैं तुम्हारी ताकत नहीं कि इस पर्याय में रिश्ता अलग कर पाओं वह तब ही समाप्त होगा जब तुम्हारी पर्याय समाप्त होगीं पिता पिता होगा, माँ माँ होगी, गुरु गुरु होगा, शिष्य शिष्य होगा, क्योंकि तुमने बनाया हैं ऐसा नियोग था सम्बन्ध विछिन्न हो जायेगा, पर रिश्ते टूटने वाले नहीं हैं तोड़ना चाहते हो तो, भो ज्ञानी ! पर्याय छोड़ना पड़ेगी पुरुषार्थ पर्याय में है, पर्याय से हो रहा है, परन्तु करने वाली पर्याय नहीं है, पर्यायी हैं अतः, नाना द्रव्यों को उनके स्वभाव की दृष्टि से देखना, परन्तु किसी को हीनदृष्टि से मत देखना हे ज्येष्ठो! तुम ज्येष्ठता की बात तो करना, पर कभी छोटों को मत छोड़ देना, छोटे का अनादर मत कर देना उसी ने आपको बड़ा बनाया हैं इन माताओं से पूछ लो, कि 'बड़ा बनता कैसे है? पहले मूंग की दाल से पूछ लेनां बेचारी को पानी में डाला जाता है, फिर सिलबट्टे पर पीस लिया, तब रोती है, पर मन में आता है कि 'बड़ा' बनना है तो शान्त हो जाती हैं थोड़ी देर बाद फिर निकालकर पहले पानी छिड़क दिया उसमें नमक मिर्ची डाल दिये और, ओह! कढ़ाई में डाल दियां अभी भी शान्ति नहीं मिली, निकाल कर उसको खटाई में डाल दिया और भो ज्ञानी! अब बना वह बड़ा, अब उसकी कीमत भी बढ़ गईं दोने में आ गया, प्याली में आ गया, कीमत बढ़ गईं पर उस बेचारी मूंग की दाल से पूछ लेना कि बड़े बने कैसे हो? इसलिए ध्यान रखो, बड़े भैया से यह तो कह देना कि हमने आपको बड़ा बनाया, पर उसको परेशान भी मत करना कि हमने तुम्हें बड़ा बनाकर बिठाया हैं भो ज्ञानी! इस संसार में प्रत्येक द्रव्य का परिणमन अपनी अवस्था में है, परन्तु मात्र आपको अपनी दृष्टि निर्मल करना हैं ऐरावत (सोलह सपने) Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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