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________________ पाल्लक सकंदक मुनी तै बोल्या, “ईब याद कर ले आपणे धरम नैं । याद सै- तन्नें मेरी बेसती करी थी। ईब भोग्गो आपणी करणी का फल ।" सकंदक मुनी होट्ठां भित्तर हांसे । उनकै याद आई अक भगवान नैं ठीक-ए कही थी- ओडै तम सारे के सारे मारे जा सको सो। वे बोल्ले“पाल्लक ! तू घमण्ड मैं पड्या सै। याद राखिए अक मूंडे करमां का नतीजा भोत मुंडा लिकड्या करै सै ।" पाल्लक पै उनकी बात्तां का कोए असर ना होया । साधुआं नैं देख लिया- ईब टैम आग्या सै । उनत्ती भगवान् याद करे अर आपणे नेमां बरतां में होई भूल-चूक की माफ्फी मांगी । फेर, गरु तै आग्या ले कै संतारा (सारी-ए उमर का खाणा-पीणा छोड्य) कै, भगवान् के ध्यान मैं बेठ गये। जल्लादां नैं मुनी कोल्हू मैं पेरने सरू कर दिए। खून्नां की धार चाल पड़ी। धरती लाल होण लाग्गी । दरदनाक महौल बण ग्या। एक-एक करदे-करदे चार सौ न्यनाणुवै साधू कोल्हू मैं पीड़ दिये । आख्यर में सकंदक मुनी का एक चेल्ला बच गया था। ओ बालक मुनी था। उसकी उमर देख कै सकंदक मुनी बोल्ले, “पाल्लक! इतणे बेकसूर साधू मार कै तन्नै ठीक नहीं कऱ्या । मैं कहूं सूं अक तू इसनैं छोड़ के पैल्हां मनै पीड़ दे। पाल्लक नैं सोच्ची- इस चेल्ले तै सकंदक नैं घणा प्यार सै। ओ बोल्या, “बोल-बाला खड्या रैह् । तेरी आंख्या के स्यांमी-ए यो मरैगा । तेरी बारी भी आण आली सै ।” करणी अर भरणी/67
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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