SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कपड़ा ताय । तहखान्ने मैं रोसनी-ए-रोसनी हो गी । यो हे मामन का बलद था, जिस पै ते उसनें कपड़ा तार्या था । बलद के था, पूरा - ए सोन्ने का बण रूहूया था। ऊप्पर तै तले ताईं हीरे-जुहारात जड़ रहे थे । राज्जा नैं सोच्ची- ईसा बलद मेरे धोरै था-ए कित जो यो ले आत्ता । मामन बोल्या- म्हाराज ! मेरे धोरै यो एक्कै बलद सैं। इसकी जोट का मैं दूसरा भी बणवान लाग रूहूया सूं । ओ भी देक्खो ।” राज्जा नैं देख्या- दूसरा बलद भी पैहले बरगा-ए था। बस उसके सर पै सींग ना थे । आग्गै मामन नैं बताई अक ईब मेरा धन सपड़ गया। जाएं तै मैं दन मैं भी काम करूं सूं अर रात मैं भी लाकड़ी चुग्गूं सूं । दन-रात मैहूनत करके मैं धन कट्ठा करण लाग रूहूया सूं जुकर इस दूसरे बलद के सींग भी पूरे हो ज्यां । " राज्जा नैं यो देख कै घणा अचम्भा होया । एक सुआल उस नै ओर बूज्झ्या- " बलद बण जांगे तै के करैगा ?" "फेर मैं हीरे जड्या होया एक सोन्ने का रथ ओर बणवाऊंगा । उस रथ मैं ये बलद जोत के मैं राजगीर के बजार मैं हांड्या करूंगा । म्हाराज ! ईसा रथ अर ईसे बलद ओर किस्से धोरै कोन्यां पावैं, बस ! या हे मेरी तिमन्ना सैं" मामन की बात सुण कै राज्जा बोल-बाला आपणे मैहूल मैं उलटा आ गया । उस नैं राणी तै बताया अक मैं आपने राज का जै सारा खुज्जान्ना भी उसने दे यूं तै फेर भी उस की तिरसना कोन्यां मिटै । एक बर राज्जा सरेणिक भगवान महावीर के दरसन करण गए। उन नैं भगवान तै बूज्झ्या, “भगवान ! मामन धोरै घणा-ए धन से । फेर भी उसके मूं पै उदास्सी रहै सै। इसका के कारण सै?" हरियाणवी जैन कथायें / 62
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy