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________________ बलाणा। आगले दन जिब दरबार लाग्या तै नोक्कर उस आदमी नैं पाकड़ कै ल्याए। राज्जा नैं बूझी- तू कुण सै ? ओ बोल्या- हे म्हाराज! मेरा नां मामन सै। मैं-ए लाकड़ी कट्ठी करूं था। राज्जा नैं फेर बूझी- जाड्डे की आद्धी रात मैं तू क्या खात्तर दुखी हो या था? मामन बोल्या- मेरे धोरै एक्कै बलद सै। मैं ऊसा-ए दूसरा बलद भी खरीदणा चाहूं सूं । जाएं तै इतणी मैहनत करूं राज्जा नैं सोच्ची- यो तै घणा-ए गरीब सै | राज-खुज्जान्ने तै इसकी इमदाद करणी चहिए । खुज्जान्ने का धन इन्है लोग्गां का सै । राज्जा नैं गऊसाला का परधान बलाया अर उस तै हुकम दिया"इसनै आपणी गेल्ला गऊसाला मैं लै ज्या । इसकै जो बलद पसंद आवै, ओ-ए इसफोरन दे दे।" मम्मन गऊसाला मैं गया पर उसकै एक भी बलद पसंद कोन्यां आया । ओ उलटा-ए राज्जा धोरै आ ग्या, “म्हाराज ! मन्नै ते आपणे बलद बरगा-ए बलद चहिए। ऊसा बलद थारे धोरै कोन्यां ।” "आच्छा! किसा बलद से तेरा ? हम भी तै देक्खें ।" राज्जा नैं कही। “मै उस नै आडै कोन्या ला सकदा म्हाराज ! जै थम उसने देखणा चाहो सो तै मेरे घरां चाल्लो।" राज्जा मामन के घरां बल द देक्खण पहोंच्या । मामन का घर तै पूरा मैहूल था । ओ राज्जा नै आपणे तहखान्ने मैं ले गया। ओडै अंधेरा था । राज्जा नैं कुछ ना दिक्खै था। जिब्बै-ए मामन नै किसे चीज पै ढंक्या होया हरियाणवी जैन कथायें/60
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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