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________________ म्हाराज तै थारे बारे मैं जो सुण्या था, मन्नैं ओ न्यूं का न्यूं पाया । " “बड़ी किरपा करी थमनै अक मैं इस के काब्बल समझया । " अरहन्नक नै कही । देव ने एक सुथरी अर घणी कीमती कुंडलां की जोड़ी काडूढी । वा अरहन्नक तै दे दी। बोल्या, “या मेरी ओड़ तै एक छोटी-सी भेंट सै । इस नै कबूल कर ल्यो ।” देव नै कई बर कही ते अरहन्नक नै वा भेंट ले ली । देव गैब हो गया । इस बात तै सारे सात्थी घणे हैरान रह गे । आपणी आंख्यां पै उन नै अकीन ना आवै था । साऱ्यां नैं सोच्ची- जै इस झाज मैं अरहन्नक सेट ना होंदा तै म्हारा बचणा तै मुस्किल - ए था । साच्ची बात सै अक धरम के सामीं तै देवता भी सर झुकाया करें सैं । हरियाणवी जैन कथायें /52
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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