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________________ खात्तर बेचैन हो गया। चित्त भी उनके दरसन करण चाल पड्या । उनकै धोरै पहोंच्या । हज्जारां की तदाद में लोग कट्टे हो रहे थे। उनकी मीट्ठी बाणी सुण के मंतरी चित्त पै घणा-ए असर होया । बस! उस्सै टैम चित्त नै अचार्य केस्सी तै घरेसत (सरावग) धरम के बारां बरत ले लिए | ओ नित्त-नेम उनकी बाणी सुणता । ग्यान की बात बूझता । अचार्य जी की बाणी तै उसके जीण का तरीका बदल गया । एक दन चित्त नैं अचार्य केस्सी तै कही - कदे म्हारे केकय देस की राजधानी स्वेताम्बका नगरी में भी पधारण की किरपा करो। अचार्य जी चुप रहे । चित्त नैं कई बर बिनती करी। अचार्य जी फेर भी बोल-बाले उसके कान्नी देखदे रहे । चित्त समझ ग्या, अचार्य केस्सी राज्जा परदेसी के बुरे बरताव नै जाणे सैं । वे कोन्यां चाह्ते अक घमण्ड में चूर परदेसी धरम की अर संघ की बेसती करै । चित्त स्वेताम्बिका नगरी मैं उलटा आग्या । ओ चाहदै था -- राज्जा परदेसी एक बर........बस एक बर अचार्य केस्सी के दरसन कर ले । के बेरा उसकी ज्यंदगी बदल ज्या । संजोग इसा होया, एक बर घूमते-टहलते अचार्य केस्सी स्वेताम्बका नगरी मैं आ गे। मंतरी नैं बेरा पाट्या, ओ जिब्बै उनकी सेवा मैं हाज्जर हो गया । उस नैं मुनियां के ठैरण का आच्छा एंतजाम करा दिया । आप भी उनकी सेवा मैं लाग्या रहंदा। उनके दरसनां खात्तर लोग्गां की भीड़ नाग्गी रहंदी। मंतरी चित्त नैं सोच्ची, किस्से तरियां राज्जा परदेसी नै भी अचार्य जी पोरै ले चालणा चहिए। फेर उसनैं एक तरकीब सोच्ची । याणवी जैन कथायें/44
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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