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________________ करै सै । ओडै अभैकुवांर नैं आपणा जाल बिछ्या दिया। उस लुगाई ते सारी बात समझा कै चोर पकड़ावण की कही । आधी रात नैं रोहिणिया रण्डी के घरां पहोंच्या । ओड़े उसकी घणी• ए खातर होई। उस तै घणी ए सराब प्या दी। करड़ा नसा हो गया उसके । अभै कुवांर की सकीम के मुताबक रण्डी अर उसके नोकर-चाकरां नैं देवां बरगा भेस बणा के,रोहिणिया घेर लिया। उसनै जिब माड़ा-सा होस आया तो सारे उसकी जै-जै कार करण लाग गे । उनमें से एक नौकर जो देव बण या था, उस तै बोल्या "हे देवता ! थम नैं आड़े देवलोक मैं देख के हम घणे-ए राज्जी होए। थम नै घणे-ए पुन्न कर राक्खे थे जो मरें पाछै देवता बण गे। आड़े का रिवाज सै अक जो कोए देवता बणै सै, ओ आपणे पाछले जनम का किस्सा सुणाया करै सै । थम भी तावले से सुणा द्यो । इंदर म्हाराज भी आड़े आण आले सैं । रोहिणिये की आंख खुल्ली। ओ हैरान रह गया। बड़बड़ाण लाग्या, "मैं सुरग मैं कित तै आ गया ? कदे यो सुपना दीखता हो !" न्यूं सुण कै देवी-देवता बणे होए नौकर-चाकर बोल्ले, “हे देव ! थारा जनम इस सुरग मैं होया सै। थम म्हारे मालक बणे सो। हम सारे थारा पाछला जनम सुणना चाहूवें सैं ।” न्यू सुण के रोहिणिया चारूं कान्नी लखाया । जिब्बै-ए उसकै वा बात याद आ गी जो उस नैं भगवान महावीर तै न्यूं-ए सुण ली थीं। ओ याद करण लाग्या, अक भगवान महावीर बता थे- देवी अर देवां की माला कद्दे भी मुरझाती कोन्या । उनकी आंख भी कोन्यां झपकती। उनके हरियाणवी जैन कथायें/34
SR No.009997
Book TitleHaryanvi Jain Kathayen
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherMayaram Sambodhi Prakashan
Publication Year1996
Total Pages144
LanguageHariyanvi
ClassificationBook_Other
File Size19 MB
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